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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/५२८

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४१०. भारतमें प्लेग

पिछले अप्रैल मासके अन्तिम सप्ताहमें भारतमें प्लेगसे ६५,७८० लोग बीमार पड़े और उनमें से ५७,७०२ मर गये। संयुक्त प्रान्तमें[] २३,३८७, पंजाबमें १९,०१५, बम्बई प्रान्तमें ३,०५६ और बंगाल में ९,७०३ लोग मरे। लिबर्टी रिव्यू नामक पत्रने इस मृत्यु-संख्याकी कड़ी आलोचना की है, और कहा है कि इस प्लेगके लिए अंग्रेज सरकार जिम्मेवार है, क्योंकि देशमें भुखमरी बहुत है। यह हिसाब लगाया गया है कि ३० करोड़में से ३ करोड़ लोगोंको केवल एक बार खाना मिलता है। यह निश्चित बात है कि जिस मनुष्यको रोज भूखा रहना पड़ता हो उसका शरीर धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जाता है, और अन्तमें ऐसा बिगड़ जाता है कि उसपर छूतके कीटाणुओंका असर तुरन्त होता है। फिर भी हमें कहना चाहिए लिबर्टी रिव्यूकी आलोचना एक हदतक नामुनासिब है। यह अनुभवके आधारपर कहा जा सकता है कि केवल भुखमरीसे पीड़ित लोगोंको ही प्लेग नहीं होता। हम देखते हैं कि अच्छी स्थितिमें रहनेवाले भी इसके शिकार हो जाते हैं। और अनुभवसे हम यह कह सकते हैं कि :

  1. जिस घरमें प्लेग होता है उस घरमें अक्सर सभी लोग बीमार पड़ते हैं। # जिस गाँव में प्लेग फैलता है वहाँ उसका सर्वथा उन्मुलन नहीं होता।
  2. जो लोग स्वच्छतापूर्वक रहते हैं उनको प्लेग कम होता है।
  3. जहाँ प्लेग हो, उस गाँवसे लोग निकल जाते हैं तो बच जाते हैं।
  4. भारतीयों में जितना प्लेग होता है उतना गोरोंमें नहीं होता।
  5. गोरे अधिक स्वच्छ रहते हैं और स्वास्थ्यके नियमोंका पालन करते हैं।
  6. भारतसे बाहर जहाँ-जहाँ प्लेग होता है वहाँ वह तुरन्त निर्मूल हो जाता है।

इससे हम देख सकते हैं कि भुखमरीके साथ प्लेगका सम्बन्ध अधिक नहीं है।

इसमें कोई शक नहीं कि प्लेग के सम्बन्धमें मुख्य बात स्वच्छता रखनेकी है। स्वच्छताका मतलब बस नहाना-धोना ही नहीं है। यह ठीक है कि शारीरिक स्वच्छता रखनी चाहिए। परन्तु इसके अतिरिक्त घर साफ रखना चाहिए, घरमें रोशनी और धूप आने देनी चाहिए। पाखाने साफ रखने चाहिए और जिस घरमें रोग हो वहाँ रोगी और दूसरोंके रहनेकी सुविधा ऐसी रखनी चाहिए कि रोगीके लिए बरता जानेवाला सामान दूसरे व्यवहारमें न लायें। प्लेगके रोगीकी तीमारदारी एक महत्त्वपूर्ण विषय है। उसके बारेमें इस समय अधिक नहीं कह सकते; किन्तु हमारे पाठकोंको यह याद रखना आवश्यक है कि प्लेगके समान दूसरा घातक रोग देखने में नहीं आता। हैजा हमेशा भयानक रोग माना गया है; लेकिन प्लेगके सामने वह कुछ नहीं है, ऐसा कहा जा सकता है। फिर भारतमें दिन-प्रतिदिन प्लेग बढ़ रहा है, घट नहीं रहा है। उदाहरणार्थ उससे १९०१ में २,७२,००० मौतें हुई, १९०२ में ५,००,००० और १९०३ में ८,००,०००; और इस वर्ष तो इतना अधिक जोर है कि सहज ही १०,००,००० मौतें हो जायेंगी। प्रतिमास इस वर्ष १,२०,०००[] मनुष्योंकी औसत आ रही है। इस प्रकार

  1. अब उत्तर प्रदेश।
  2. मूल लेखमें १,२०,००० का अंक प्रत्यक्षतः भूलसे लिखा गया है।