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पत्र : एम॰ एच॰ थर्स्टनको

मौतें होती ही रहीं और प्रतिवर्ष बढ़ती ही रहीं तो सारा भारत १५ वर्षमें उजाड़ हो जाये तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। कुछ गाँव तो उजड़ चुके हैं। पंजाब में कई जगह लोकोपयोगी काम बन्द हो गये हैं। प्लेगसे बचे हुए लोग गाँव छोड़कर भाग गये हैं। इसलिए इसपर प्रत्येक भारतीयको विचार करना चाहिए। प्रत्येक भारतीयको अपना हृदय टटोलना है और अपने कर्त्तव्यकी रूपरेखा तैयार करनी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-६-१९०५

४११. पत्र : एम॰ एच॰ थर्स्टनको

[जोहानिसबर्ग]
जून ५, १९०५

श्री एम॰ एच॰ थर्स्टन
पो॰ ऑ॰ बॉक्स १७१२
जोहानिसबर्ग
प्रिय महोदय,

मैं देखता हूँ कि जिस मकानमें रह रहा हूँ उसके भोजन कक्षकी चिमनी बिलकुल काम नहीं करती। उसमें जो भाग लकड़ीका बना है वह बाहर उभर आया है। प्रत्येक बार, जब मैं आग जलाता हूँ, भोजनकक्ष धुएँसे भर जाता है। यह धुआँ लकड़ीके बाहर उभरे हुए भागकी दरारोंमें से निकलता है।

यदि आप इसको कृपापूर्वक अविलम्ब ठीक करा देंगे तो मैं आपका कृतज्ञ हूँगा।

मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर भी आकृष्ट करना चाहूँगा कि ट्रायविलेमें सब जगह किराये घट गये हैं। और यदि आप, मैं जो किराया दे रहा हूँ उसमें कुछ कमी कर देंगे तो मैं कृतज्ञ होऊँगा।

आपका विश्वासपात्र,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ २५२।