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भारतसे गिरमिटिया मजदूर

भी नहीं होगा; क्योंकि सूचनामें साफ कहा गया है कि ट्रान्सवालमें बाजार शहरके अन्दर ही स्थापित किये जायेंगे; और लॉर्ड मिलनरका आश्वासन है कि ये बाजार शहरके अन्दर ही ऐसी जगहपर होंगे कि जिससे ब्रिटिश भारतीयोंको गोरे व्यापारका भी कुछ हिस्सा मिल सके। अब, अगर ज़ीरस्टकी पुरानी बस्ती, जो शहरके भीतर नहीं बाहर है, दूसरे शहरोंमें बननेवाले बाजारोंका नमूना हो तो हमारी रायमें यह एक अत्यन्त गम्भीर बात होगी। हर हालतमें उन लोगोंके लिए अपना सारा कारोबार हटाना बड़े संकटकी बात होगी, जिनका व्यापार जम गया है। अत: हमें अब भी आशा है कि निहित स्वार्थोको छेड़नेका ऐसा काम नहीं किया जायेगा। परन्तु एक तरफ पड़ी हुई ऐसी बस्तियोंमें व्यापार करना नये अर्जदारोंके लिए भी एकदम असम्भव होगा। चूँकि वर्ष समाप्त होने जा रहा है, इस मामलेका निर्णय करना दिन-ब-दिन अधिकाधिक जरूरी होता जा रहा है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०३

२०. भारतसे गिरमिटिया मजदूर

पिछले हफ्ते हमने प्रवासियोंके कार्यवाहक संरक्षकके सन् १९०२ के मनोरंजक प्रतिवेदनके एक हिस्सेपर विचार किया था। उस वर्ष सोलह जहाजोंने—ग्यारहने मद्राससे और पाँचने कलकत्ता से—४,३७३ भारतीयोंको उतारा, जिनमें २,९४० पुरुष थे और १,०६९ स्त्रियाँ थीं। इस वर्ष प्रवेशके लिए १८,००० अजियाँ आई थीं। इनके अलावा १,९०२ अविचारित अजियाँ सन् १९०१ की पड़ी हुई थीं। इस प्रकार सन् १९०२ के अन्तमें इस प्रतिवेदनके अनुसार १७,५०० मनुष्य ऐसे थे जो भेजे नहीं जा सके। प्रतिवेदन आगे कहता है:

अगर भारतमें मजदूरोंको भरती और उन्हें भेजनेका काम जोरोंसे आगे नहीं बढ़ाया गया तो भारतीय मजदूरोंकी आवश्यक संख्या हमें ढाई वर्षसे पहले नहीं मिल सकेगी। भारतीय मजदूरोंकी मांग इतनी अधिक बढ़नेका कारण वतनी मजदूरका, खास तौरपर खेतीके काममें, अविश्वसनीय होना है।

इस असाधारण माँगके दूसरे कारण ये बताये गये हैं:

लड़ाईके दिनोंमें इन वतनी आदमियोंको ऊँची मजदूरी मिलती रही है। रिक्शा चलाकर वे प्रतिदिन एक-एक पौंड कमा लेते हैं। फिर गोरी आबादी ९,००० बढ़ गई है। इसलिए बहुतसे मजदूरोंको उनके पास काम मिल गया होगा। मजदूरोंकी इस कमीके कारण वतनी आदमियों और स्वतन्त्र भारतीयोंको खूब ऊँची मजदूरी मिल रही है। यह सातवाँ वर्ष है, जब उनको हर महीने साठ-साठ शिलिंग पड़ जाते हैं।

इस प्रकार प्रतिवेदनसे प्रकट है कि उपनिवेशको समृद्धिके लिए भारतीयोंकी कितनी अधिक आवश्यकता है। हर जगह उनकी जरूरत है और फिर भी अखबारोंमें लेखक शिकायतें कर रहे हैं कि उपनिवेशमें भारतीयोंकी बाढ़ आ रही है। हमारा सहयोगी नेटाल ऐडवर्टाइज़र तो और आगे बढ़कर उपनिवेशके प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम और गिरमिटिया मजदूरोंके प्रवेश-सम्बन्धी कानूनोंके भेदको भी भुला देता है और लिखता है कि भारतीयोंका प्रवेश रोकनेमें प्रवासी-