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४१३. पत्र : खुशालभाई गांधीको[१]

[जोहानिसबर्ग]
जून. ७, १९०५

सेवामें
श्री खुशाल जीवन गांधी
सरधार राजकोट होकर
काठियावाड़, भारत

आदरणीय खुशालभाई,

आज छगनलालका पत्र मिला है। वह उसमें लिखता है कि हकीकी[२] लड़की गुजर गई है। यहाँ ऐसी दुर्घटनाओंपर विचार करनेका भी अवकाश नहीं रहता। यह इस देशकी तासीर है। मैं समझ सकता हूँ कि आपके और भाभीके मनपर इस दुःखका असर कितना हुआ होगा। किन्तु ऐसे दुःख हम सबको कसौटीपर कसते हैं। इस समय धीरज रखा जा सके तभी ठीक है। मैं दो दिनोंमें फोनिक्स जाऊँगा। तब चि॰ छगनलाल और मगनलालसे मुलाकात होगी।

मोहनदासका दंडवत्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ २७२।

४१४. पत्र : फुलाभाईको

[जोहानिसबर्ग]
जून. ७, १९०५

सेवामें
श्री फुलाभाई
बॉक्स १२८
पाँचेफस्ट्रूम

प्रिय श्री फुलाभाई,

आपके दो पत्र मिले।

अपने पत्र में आपने मुझे फीस भेजनेके लिए लिखा था और हुसेन इब्राहीम यहाँसे गये तब भी आपने पैसा भेजनेकी बात कही थी। इसलिए मैंने आपके खाते नामे लिखनेका निर्देश दे दिया था। चाहे जिसके खाते नामे लिखें, मेरे लिए एक ही बात है; क्योंकि मैं किसीपर नालिश तो करता नहीं हूँ। इसीलिए बिना जाने-पहचाने व्यक्तियोंसे खास तौरपर अगाऊ फीस

  1. गांधीजीके चचेरे भाई और श्री छगनलाल और मगनलालके पिता।
  2. श्री खुशालभाईकी पुत्री हरकुँवर बेन।