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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेता हूँ। आप बीचमें मध्यस्थ न होते तो मैं फीस लिए बिना बिलकुल काम नहीं करता; फिर भी चूँकि आप आनाकानी करते हैं, इसलिए यह रकम आपके खाते में नहीं रखूँगा।

हुसेन इब्राहीम यहाँ आयें अथवा वहाँसे दस्तखत करके दस्तावेज भेजें तभी यह स्टोर बचेगा; नहीं तो इसे एक ही लेनदार खा जायेगा। वे फीस भेजें तो मैं दस्तावेज तैयार करके भेज दूँ। यह लिखें कि उनका माल कहाँ है और नीलामका नोटिस मिला है या नहीं।

मो॰ क॰ गांधीके यथायोग्य

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ २८१।

४१५. लॉर्ड सेल्बोर्न और भारतीय

हम एक अन्य स्तम्भमें ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों द्वारा लॉर्ड सेल्बोर्नको मानपत्र[१] भेंट करनेका मनोरंजक विवरण प्रकाशित करते हैं। यद्यपि मानपत्रकी संलिपि उक्त अवसरके अनुकूल और सीधी-सादी है, परन्तु उससे यह प्रकट होता है कि ब्रिटिश भारतीय, चारों ओर परिस्थितियाँ उत्तेजक होनेपर भी, अपने सहज शिष्टाचारको नहीं भूलते और यह बात उन्होंने, दक्षिण आफ्रिकामें सम्राटके प्रतिनिधिके स्वागतसे सिद्ध कर दी है। उचित तो यह था कि यह मानपत्र सार्वजनिक रूपसे दिया जाता; परन्तु खेद है कि ऐसा नहीं किया गया। किन्तु स्पष्ट है कि इसमें भूल भारतीयोंकी नहीं थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने तैयारियाँ बहुत पहले से ही कर रखी थीं और परमश्रेष्ठ गवर्नरके निजी सचिवने जो-जो आवश्यक बताया वह सब पूरा कर दिया गया था। यद्यपि लॉर्ड सेल्बोर्नके स्वागतमें किये गये समारोह राजनीतिक नहीं थे, फिर भी हम देखते हैं कि प्रिटोरिया और जोहानिसबर्ग, दोनोंके महापौर, भारतीय प्रश्नकी चर्चा किये बिना नहीं रह सके हैं। इस प्रश्नकी ओर लॉर्ड सेल्बोर्नका ध्यान इतनी जल्दी खींचना उचित था या नहीं, इस विषयमें मतभेद रहेगा ही। जोहानिसबर्ग के महापौर, श्री जॉर्ज गॉश यों तो उदारमना सज्जन हैं, और वे दक्षिण आफ्रिकामें कई बार रंगदार लोगोंका पक्ष भी ले चुके हैं, परन्तु इस अवसरपर, अपने स्वास्थ्यकी शुभकामनाका उत्तर देते हुए, उनके मुँहसे भी निकल गया कि सर आर्थर लालीने श्री लिटिलटनको ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नके विषय में जो अन्तिम खरीता भेजा है उससे सच्ची स्थिति प्रकट हो जाती है; और भारतीय लोगोंको कृतज्ञ होना चाहिए कि,

श्री लालीने इस प्रश्नको इतने ऊँचे पायेपर उठा दिया है कि उनमें से कोई उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था, और अपने खरीतेमें उन्होंने एक अत्यन्त उलझे हुए तथा कठिन प्रश्नको नई धारासभामें, जो जल्दी ही उनके ही नेतृत्वमें चलेगी, हले करनेका एक आधार प्रदान किया है।

हमारे खयालसे तो हम निश्चयात्मक रूपसे दिखा चुके हैं कि वह खरीता गलतबयानियों और ऐसी भावनाओंसे भरा पड़ा है जिनसे किसी भी अंग्रेज राजनयिककी प्रतिष्ठा नहीं बढ़ती। हम सर आर्थर लालीका बहुत आदर करते हैं। हमारा विश्वास है उनके हेतु अच्छे रहे हैं; परन्तु हमें खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि वे इस प्रश्नके सम्बन्ध में बिलकुल गलत रास्तेपर चले गये हैं और व्यापक द्वेषभावके वशीभूत होकर उसके शिकार बन गये हैं। उन्होंने

  1. देखिए "लॉर्ड सेल्बोर्नको दिया हुआ मानपत्र," मई २८, १९०५।