उपनिवेश मन्त्रीको यह सलाहतक देनेमें संकोच नहीं किया है कि वे ब्रिटिश सरकारकी बार-बार दुहराई हुई प्रतिज्ञाओंको तोड़ दें; और निस्सन्देह उन्होंने अनजानमें ही इस भयावह परामर्श के समर्थनमें तथ्योंके गलत हवाले दिये हैं। ब्रिटिश सरकारकी शक्ति बहुत कुछ, उसकी सचाई में और अपने वचनोंका ईमानदारीसे पालन करनेमें है। यह ठीक है कि कई बार उसने इसके विपरीत आचरण किया है, और जब-जब उसने ऐसा किया है तब-तब अंग्रेजोंकी प्रतिष्ठाको ही क्षति हुई है। कोई भी राजनयिक ऐसे आचरणका स्मरण अभिमानपूर्वक नहीं करता; वह या तो उसकी लीपा-पोती करता है या उसकी सफाई देनेका प्रयत्न करता है। इस प्रकार वह अप्रत्यक्ष रूपसे यह दिखाना चाहता है कि ब्रिटिश राजनयिकों का इरादा अपने ऊँचे स्तरसे स्खलित होनेका कदापि नहीं है। इसलिए श्री जॉर्ज गॉशकी स्थितिके सज्जनको भी उन लोगोंकी पंक्ति में खड़ा देखकर चिन्ता होती है जो कि ब्रिटिश तौर-तरीकोंमें क्रान्ति करनेवाली नीतिके समर्थक हैं। फिर भी इससे, ब्रिटिश भारतीयोंके प्रश्नपर ट्रान्सवालके यूरोपीय लोगोंकी भावनाएँ प्रकट होती हैं। और व्यावहारिक राजनीतिज्ञोंको इन भावनाओंका ध्यान रखना है।
- [अंग्रेजीसे]
- इंडियन ओपिनियन, १०-६-१९०५
४१६. चीनियों और काफिरोंकी तुलना
चीनी लोग जोहानिसबर्गकी खानोंमें रखे गये हैं, इसके सम्बन्धमें अब भी इंग्लैंडमें बहुत चर्चा होती रहती है। इस बारेमें लोगोंके मानसिक क्षोभको शान्त करनेके लिए लॉर्ड मिलनरने अपनी रवानगीसे पहले एक विवरण ब्रिटेन भेजा था जो वहाँ प्रकाशित हुआ है। इसमें लॉर्ड मिलनरने बताया है कि काफिरोंको ढूँढ़ने और उन्हें जोहानिसबर्ग लानेमें तीन वर्षोंमें प्रति व्यक्ति १० पौंड १५ शिलिंग खर्च बैठता है। चीनियोंको लानेका खर्च प्रति व्यक्ति १६ पौंड ११ शिलिंग ३ पैंस पड़ता है। इससे लॉर्ड मिलनर दिखाना चाहते हैं कि चीनियों को लाने में खान मालिकों को पैसोंका फायदा नहीं होता। फिर जोहानिसबर्ग में लाये जानेपर भी काफिरोंकी अपेक्षा चीनियोंपर खर्च अधिक पड़ता है। क्योंकि काफिरोंपर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पौने छः पेंस खर्च आता है, जब कि चीनियोंपर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति ११ पेंस खर्च पड़ता है; लॉर्ड मिलनर इसके आधारपर बताते हैं कि यदि खान मालिकोंको पर्याप्त संख्यामें काफिर मिल जायें तो वे चीनियोंका नाम भी नहीं लेंगे। ३०,९८० चीनी तो ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हो चुके हैं।
इन सारे आँकड़ोंमें लॉर्ड मिलनर एक बात भूल गये हैं कि काफिर क्वचित् ही छः महीने काम करते हैं; जब कि चीनियोंको लगातार ३ वर्ष काम करना पड़ता है। फिर चीनी, काफिरोंकी अपेक्षा अधिक फुर्तीले होते हैं, इसलिए उनसे अधिक काम लिया जा सकता है। यह बात मुख्यतः आवश्यक है और इसके बारेमें ये महानुभाव एक शब्द भी नहीं कहते। जबतक यह ध्यान नहीं रखा जाता, तबतक लॉर्ड मिलनरके आँकड़े कुछ भी उपयोगी नहीं माने जा सकते। अधिक कुशलको अधिक वेतन दिया जाता है। यदि ऐसा न हो तो लॉर्ड मिलनरके हिसाब से तो यह भूल हो रही है। इसलिए हमें लगता है कि लॉर्ड मिलनरके विवरणका प्रभाव ब्रिटेनमें अधिक होनेकी सम्भावना नहीं है।
- [गुजरातीसे]
- इंडियन ओपिनियन, १०-६-१९०५