४१९. भारत में प्लेगको कम करनेके उपाय
बम्बईके डॉक्टर टर्नरने बम्बई सरकारको लम्बा पत्र लिखा है। उसमें उन्होंने कहा है कि प्रतिवर्ष प्लेग बढ़ता जा रहा है। इसमें कमी होनेका एक ही रास्ता है और वह है टीके लगवाना। उक्त डॉक्टरकी मान्यता है कि जिन्होंने टीके लगवाये हैं उनको प्लेग क्वचित् ही होता है। लेकिन लोगोंको टीका लगवानेके लिए कैसे समझाया जाये यह एक बड़ी कठिनाई है। डॉ॰ टर्नर लिखते हैं कि लोगोंके लिए टीका बाध्य कर देनेसे भी यह सम्भव नहीं है। मजदूरोंको उनके मालिक बाध्य करें तो अच्छा; परन्तु ऐसा करनेमें समय लगेगा। इसलिए वह भी ठीक नहीं है। अन्तमें डॉ॰ टर्नर कहते हैं कि सरकार टीके लगवानेवाले व्यक्तिका बीमा करे; और उसे यह दस्तावेज लिख दे कि यदि वह टीका लगवानेके बाद एक वर्षके भीतर मर जायेगा तो सरकार उसके रिश्तेदारोंको १०० रुपया देगी। डॉक्टरकी मान्यता है कि ऐसा करनेसे बहुत आदमी टीके लगवायेंगे। एक दूसरे डॉक्टरका सुझाव है कि टीके लगवानेवाले लोगोंके लिए एक लॉटरी निकाली जाये। जो लोग टीके लगवायेंगे उनके नामकी पर्चियाँ डाली जायें और जिसके नामकी पर्ची निकले उसे इनाम दिया जाये। इस प्रकार ये भलेमानुस प्लेगको नष्ट करनेके लिए निष्फल प्रयत्न करते रहते हैं।
यह सम्भव है कि कुछ लोग इस प्रकारसे टीके लगवानेसे बच जाते होंगे। परन्तु हमें इसमें कुछ भी लाभ नजर नहीं आता। टीके लगवानेका यह उपाय वैसा ही है जैसा कोई विषयी मनुष्य अपने विषय-भोगोंके परिणामसे मुक्त होनेके लिए ढूँढ़ता है। टीके लगवानेसे प्लेग के कारण निर्मूल नहीं होते। और जबतक ये कारण निर्मूल नहीं होते तबतक वास्तविक लाभ नहीं होगा। अगर प्लेग कम हो जायेगा तो उसके स्थानमें कोई दूसरा रोग पैदा हो जायेगा। जैसे जड़ें खोदे बिना पेड़ खतम नहीं होता वैसे ही प्लेगका कारण समाप्त किये बिना प्लेग समाप्त होनेवाला नहीं है। लोगोंकी गन्दगी दूर करना, लोगोंकी रीति-नीति सुधारना और लोगोंकी गरीबी मिटाना आवश्यक है। हम मानते हैं कि हम लोग स्वच्छताके नियमों का पालन नहीं करते, यह हम पाप करते हैं। हमारी रीति-नीति ठीक नहीं है, क्योंकि हम अपने कर्त्तव्योंको भूल जाते हैं। तिसपर यह गरीबी है; इसलिए हमें सभी दशाएँ घेरती है। यह अवस्था कैसे सुधरे इसका विचार जो कर सके और विचार करके उसके अनुसार आचरण कर सके, वह मनुष्य भारतका त्राता माना जायेगा। इस प्रकारके मूलगत उपाय करनेके बाद सहायताके रूपमें दूसरे उपाय किये जायेंगे तो वे शोभा देंगे।
- [गुजरातीसे]
- इंडियन ओपिनियन, १७-६-१९०५