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४२३. पत्र : टाउन क्लार्कको

[जोहानिसबर्ग]
जून २२, १९०५

सेवामें
टाउन क्लार्क
पो॰ ऑ॰ बॉक्स १०४९
जोहानिसबर्ग
महोदय,

विषय : भारतीयोंका नगरपालिकाकी ट्रामोंमें यात्राका अधिकार

यदि ट्रामवे-समितिने इस मामलेपर विचार कर लिया हो तो मैं इस सम्बन्ध में प्रेषित अपने पत्रोंके उत्तरके लिए आपको धन्यवाद दूँगा

मेरे मुवक्किलने मासिक पासके लिए प्रार्थनापत्र भेजा था। यदि समिति उसके प्रार्थनापत्रपर सहानुभूतिपूर्वक विचार न करे तो वह इस मामलेको आगे बढ़ानेके लिए उत्सुक है और अपने अधिकारकी परीक्षा करना चाहता है।

आपका आज्ञाकारी,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ३९७।

४२४. पत्र : पारसी रुस्तमजीको

[जोहानिसबर्ग]
जून २२, १९०५

श्री पारसी रुस्तमजी जीवनजी घोरखोदू
९, खेतवाड़ी गली
बम्बई,
श्री सेठ रुस्तमजी जीवनजी घोरखोद,

मैं पिछले अठवाड़ेमें डर्बन गया था। तभी दूकानपर भी गया। उमरसेठ, कैखुसरू, अब्दुल हक और मैं—साथ-साथ बैठे और हिसाब देखा। भाड़ेकी आय बहुत घट गई है। वह २०० पौंडके नीचे आ गई है तथा अभी और घटेगी। मगर इसका कोई उपाय नहीं है। एवान होटलकी संचालिका महिलासे मिला। उसने कहा कि भाड़ा कम होगा, वह तभी रहेगी। मैंने उससे भाड़ा कम करनेकी हाँ कर दी है। व्यापारमें भी कोई खास तत्त्व नहीं दिखाई देता। लेकिन अब्दुल हक में हिम्मत है, इसलिए उमर सेठकी सलाह है कि थोड़ा बहुत व्यापार करें। वे खुद देखरेख रखने की बात कहते हैं। इसलिए मैं मानता हूँ कि थोड़ा व्यापार करने में हर्ज नहीं है।