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४२६. पत्र : "स्टार" को[१]

[जून २४, १९०५ के पूर्व]

[सेवामें
श्री सम्पादक
स्टार
जोहानिसबर्ग]
महोदय,

मैं देखता हूँ कि श्री लवडेने इस उपनिवेशमें बड़ी संख्या में भारतीयोंके आगमनके विषय में अपना वक्तव्य फिर दुहराया है। इसमें उन्होंने उन सबूतोंकी पूरी उपेक्षा की है जिन्हें पहले जारी किये गये वक्तव्योंके बाद देख चुकनेकी बात वे स्वीकार करते हैं। श्री लवडेका खयाल है कि परवाना विभाग ब्रिटिश भारतीयोंको यहाँ आनेसे नहीं रोकता, और जो लोग शरणार्थी नहीं हैं, वे भी इस उपनिवेशमें आ रहे हैं। मुख्य परवाना-सचिवकी रिपोर्टको देखनेके पश्चात्, कोई भी इसी नतीजे पर पहुँचेगा कि श्री लवडे उस रिपोर्टपर विश्वास करनेसे इनकार करते हैं। मैं तो यही कह सकता हूँ कि ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंको भी इस उपनिवेशमें प्रविष्ट होनेमें बेहद कठिनाईका सामना करना पड़ता है। मेरे सामने परवाना कार्यालयका एक पत्र है जो एक ब्रिटिश भारतीयको भेजा गया है। इस भारतीयने कोई सात महीने पूर्व परवानेके लिए प्रार्थनापत्र दिया था। प्राप्त पत्रमें उससे पूछा गया है कि क्या उसे अब भी परवानेकी जरूरत है। बेचारा शरणार्थी महीनों ट्रान्सवालमें अपना प्रवेशाधिकार सुनिश्चित किये जानेकी राह देखता रहा। उसके बाद मित्रहीन होनेसे भारत लौट गया। यह पत्र उन सज्जनने मुझे भेजा है जिनका पता वह परवाना-कार्यालयको दे गया था। और यह इस किस्मका एक ही मामला नहीं है। यूरोपीयोंको तो, वे चाहे शरणार्थी हों, चाहे न हों, माँगते ही परवाने मिल जाते हैं, परन्तु भारतीय शरणार्थियोंको प्रवेशसे पूर्व कमसे कम दो महीने इंतजार करना पड़ता है। और तिसपर भी, प्रत्येक प्रार्थीको पहले अनेक जाब्तोंमें से गुजरना और बहुत-सा रुपया खर्च करना पड़ता है, तब कहीं वह उपनिवेशमें प्रवेश कर सकता है। इनमें से कई शरणार्थी तो ऐसे हैं जो पुराने शासन कालमें, देशमें रहने की अनुमतिके मूल्यके रूपमें ३ पौंड कर दे चुके हैं। प्रार्थीको प्रार्थनापत्रका फॉर्म लेनेके लिए स्वयं किसी तटवर्ती नगरके परवाना कार्यालयमें जाना आवश्यक है। फिर उसे वह फॉर्म किसीसे भरवाना पड़ता है। उसके लिए भी वह प्रायः कुछ फीस देता है। जब प्रार्थनापत्र जोहानिसबर्गके परवाना कार्यालयमें पहुँच जाता है, तब जिन व्यक्तियोंके नाम हवालेके लिए दिये गये हैं, उनको पत्र भेजे जाते हैं। अब इन व्यक्तियोंको हलफनामे देने पड़ते हैं जिनपर आधे क्राउनका स्टाम्प लगाना होता है। यदि पूर्व निवासके सम्बन्ध में प्रस्तुत साक्षी सन्तोषजनक समझी जाती है तो प्रार्थीको उपनिवेशमें प्रवेशका अधिकार देते हुए सूचना भेज दी जाती है। अन्त यहीं नहीं हो जाता। इसके बाद प्रार्थीको जोहानिसबर्ग पहुँचना, परवाना-कार्यालयमें जाना और जिरहके लिए खुद पेश होना पड़ता है। यदि वह वहाँ परीक्षक अधिकारीको संतुष्ट कर दे तो उसे उपनिवेशमें रहनेका स्थायी अधिकारपत्र मिल जाता

  1. यह इंडियन ओपिनियनमें "श्री लवडेकी गलतबयानियोंका खण्डन" शीर्षकसे उद्धृत किया गया था।