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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। मैं ऐसे मामले भी जानता हूँ जिनमें कई आदमी वापिस लौटा दिये गये हैं क्योंकि वे परीक्षक अधिकारीको यह तसल्ली नहीं करा सके कि वे शरणार्थी हैं। इसलिए यदि परवाना कार्यालयके विरुद्ध कोई शिकायत कर सकते हैं तो वे, ब्रिटिश भारतीय ही हैं। और वे उस जरायमपेशा जातिके नहीं हैं जिनका जिक्र श्री हॉस्केनने किया है। श्री लवडेने एक बार फिर पीटर्सबर्गके महापौर द्वारा प्रकाशित आँकड़ोंका हवाला दिया है। परन्तु इन आंकड़ोंके सम्बन्धमें ब्रिटिश भारतीय संघने पीटर्सबर्गके महापौरको जो चुनौती दी थी उसे उन्होंने अबतक स्वीकार नहीं किया है, हालाँकि उत्तेजनाकी बात पहले उन्होंने की थी। मैं उस पत्रमें से कुछ शब्द उद्धृत करने का साहस करता हूँ जो कि ब्रिटिश भारतीय संघ के अध्यक्षने आपको ९ दिसम्बरको लिखा था।

मैं नहीं मानता कि इस समय पीटर्सबर्ग में ४९ भारतीय व्यापारी हैं। भारतीय बस्तीसे अलग पीटर्सबर्ग नगरमें भारतीयोंके केवल २८ वस्तु-भण्डार हैं और इनमें कुछके मालिक एक ही भारतीय हैं।. . .युद्ध से पहले नगर के अन्दर कमसे कम २३ भारतीय वस्तु-भण्डार थे।

इन सब दुकानदारोंके नाम उसी पत्रमें दिये हुए हैं। इस वक्तव्यको मिथ्या कभी भी सिद्ध नहीं किया गया है। किन्तु श्री लवडे कहते हैं कि एशियाई व्यापारी-आयोगने रिपोर्ट दी है कि युद्धसे पहले पीटर्बगमें बिना परवानेका केवल एक भारतीय व्यापारी था। यह बात भ्रामक है। मेरे सामने एशियाई व्यापारी-आयोगकी पूरी रिपोर्ट मौजूद है। पहले तो यह रिपोर्ट अन्तरिम है। दूसरे आयोग के सदस्य यह दावा नहीं करते कि उन्होंने बिना परवानोंके व्यापार करने वाले भारतीयोंकी संख्याका निश्चित पता लगा लिया है। आयोगके सदस्योंने अपने सम्मुख प्रस्तुत किये गये दावोंका उल्लेखमात्र किया है। उन्होंने कहा है कि पीटर्सबर्ग से उन्हें केवल एक ब्रिटिश भारतीयका दावा मिला। कुल मिलाकर उनके सामने केवल २३३ दावे पेश किये गये थे। निश्चय ही इन दावोंसे उन एशियाई व्यापारियोंकी सूची खतम नहीं हो जाती जो कि यहाँ युद्धसे पहले मौजूद थे। समाचारपत्रोंमें यह जानकारी भी छपी थी कि आयोगके सदस्यों द्वारा अपने अधिकारके सम्बन्धमें निर्णय देनेके बाद ब्रिटिश भारतीयोंने अपने सब दावे वापिस ले लिये और आयोगकी कार्रवाईमें भाग लेना बन्द कर दिया। आयोगके सदस्योंने यह भी लिखा है कि सर्वोच्च न्यायालयाने उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंके स्वतन्त्रतापूर्वक व्यापार करनेके अधिकारके विषयमें दायर किये गये प्रसिद्ध परीक्षात्मक मुकदमेका जो फैसला दिया, उसके कारण उनका काम बीचमें ही रुक गया। अवश्य ही श्री लवडे आयोगकी रिपोर्टके सम्बन्धमें इन सब तथ्योंको जानते होंगे। उसके बावजूद यदि उन जैसे जिम्मेवार राजनीतिक नेता ऐसी बात कहें जो कि सत्य सिद्ध नहीं की जा सकती, और जनतामें भ्रम फलानेका प्रयत्न करें तो यह आश्चर्य है। मैं मानता हूँ कि प्रिटोरियाकी बस्तीमें भारतीयोंकी आबादी बढ़ गई है। वह शायद पीटर्सबर्ग और पाँचेफस्ट्रममें भी बढ़ी है। परन्तु क्या वे यह तथ्य भी ध्यानमें रखेंगे कि जोहानिसबर्गकी बस्ती तो बिलकुल खतम ही हो गई है; पुरानी बस्तीमें जितने ब्रिटिश भारतीय रहते थे उनमें से अब आधे भी नहीं रहे हैं; और पिछले तीन महीनोंमें कमसे कम ३०० ब्रिटिश भारतीय जोहानिसबर्ग छोड़कर चले गये हैं? श्री कनिंघम ग्रीनके सामने प्रस्तुत किये गये आँकड़ों अनुसार, ट्रान्सवालमें युद्धसे पहले १५,००० भारतीय थे। परवाना विभागने उनको १२,००० से अधिक परवाने नहीं दिये, और चूँकि उपनिवेश छोड़कर जानेवाले भारतीयोंकी संख्या उनसे अधिक है जो कि यहाँ आने दिये जा रहे हैं, इसलिए मैं यह निवेदन करनेका साहस करता हूँ