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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेसे इनकार कर देना चाहिए जिससे भारतीयोंका अचल सम्पत्तिकी मिल्कियतका अधिकार सीमित होता हो।

नेटालकी संसद में इस समय जिस भारतीय-विरोधी कानूनपर विचार किया जा रहा है उससे स्थिति खतरनाक है यह पता चलता है। प्रायः हर गज़टमें उसके बारेमें कुछ-न-कुछ रहता है। बन्दूकें वगैरा रखनेके बारेमें भारतीय वतनी-विभागके अन्तर्गत लाये जायेंगे।

किसी भी देहाती जमीनपर, जिसके मालिक वे खुद नहीं हैं, जमीन कर लगाने के उद्देश्यसे, उनका कब्जा कब्जा नहीं माना जायेगा।

डर्बन नगर-परिषद दूकानदारोंपर परवाने लादनेका अधिकार माँग रही है और उन्हें विक्रेता परवाना अधिनियम के अन्तर्गत ले आना चाहती है।

संयुक्त नगर-निगम अधिनियमका मंशा भारतीयोंको नगरपालिका मताधिकारसे वंचित करना है।

नेटाल गवर्नमेंट गज़टमें जो विधेयक अभी-अभी प्रकाशित हुए हैं उनका मंशा वतनी भोजनालयोंके मालिकोंको विक्रेता-परवाना अधिनियम के अन्तर्गत लाना और फेरीवालोंके परवानोंके क्षेत्रको उस मजिस्ट्रेटी हलकेतक सीमित करना है, जिसमें वे जारी किये गये हों। (अबतक जिसके पास नगरपालिकाकी हदोंके बाहर फेरी करनेका परवाना होता था वह नगरपालिकाके क्षेत्रोंको छोड़कर उपनिवेशमें हर जगह फेरी लगा सकता था।)

इन कानूनोंको बनाना अनावश्यक और अपमानजनक है। इसलिए मेरा खयाल है कि, जैसा कि लॉर्ड कर्ज़नने अपने बजट सम्बन्धी भाषणमें कहा था, यदि नेटाल-सरकार अपनी भारतीय-विरोधी कार्रवाइयोंको बन्द नहीं कर देती और विक्रेता-परवाना अधिनियम में सुधार करके कमसे कम पीड़ित पक्षको सर्वोच्च न्यायालय में अपील करनेका अधिकार नहीं देती तो अगला कदम उठानेका अर्थात नेटालका गिरमिटिया भारतीयोंका प्रवास बन्द कर देनेका समय अब आ गया है।

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स : ४१७, जिल्द ४१४, इंडिया ऑफिस।

४२८. लड़ाईके दिनोंकी अन्धेरगर्दी

यह ठीक है कि लड़ाईके दिनोंमें देशभक्तिकी भावना प्रत्येक व्यक्तिके हृदयमें जागृत होती है। इस भावना में बहुत फायदा होता है। इसके नशेमें बहुत-से देश हितैषी लोगोंने थोड़ी-थोड़ी फौज लेकर ऐसे काम कर दिखाये हैं जिनसे संसार चकित हो गया है। एक ओर जब कुछ स्थानों में ऐसी भावनाकी कुछ बाढ़ आई है तब दूसरी ओर युद्धमें काफी बन्दोबस्त करनेमें अधिकारियोंकी असमर्थताका फायदा उठानेवाले कुछ खुदगर्ज लोगोंकी कारगुजारियोंके फलस्वरूप सैकड़ों हजारों और लाखों लोगोंकी जानें चली गई हैं, और वे तबाह हो गये हैं। या गुलाम बन गये हैं। लड़ाईके जमाने में कुछ साधारण लोगोंने इस अन्धेरगर्दीसे लाभ उठाकर ऐसे काम किये हैं जिन्हें करनेकी बात वे किसी और समयमें सोच ही नहीं सकते थे; और, ऐसा करके उन्होंने इस अन्धेरगर्दीको और भी बढ़ाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि लड़ाईके समय नीति और प्रामाणिकताके नियम मानों बिलकुल बिसर ही जाते हैं। छोटी लड़ाई के मुकाबले बड़ी लड़ाईके दिनों में इन नियमोंका उल्लंघन और भी ज्यादा देखने में आया है।