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लड़ाईके दिनोंकी अन्धेरगर्दी

इसका कारण यह बताया जाता है कि मनुष्यकी मनोवृत्तिकी परख संकटके समय होती है। जबतक किसीको सफलतापूर्वक अपराध करनेका मौका नहीं मिलता तबतक तो यही माना जाता है कि उसकी परीक्षा नहीं हुई। जब वह मौका मिलनेपर भी अचल रहे तभी यह गिना जाता है कि वह कसौटीपर खरा उतर गया। ऐन मौकेपर ऐसी अटल दृढ़ता क्वचित् और विरले लोगोंमें ही पाई जाती है।

लड़ाई ज्यों-ज्यों बड़ी होगी त्यों-त्यों अन्धेरगर्दीकी सीमा बढ़ेगी। क्रीमियाकी लड़ाई[१] के षड्यन्त्रोंका जो भेद खुला और छोटे-मोटे दूसरे तथ्य प्रकाशमें आये, वे अत्यन्त दुःखदायक जान पड़े। उस युद्धके समय सैनिकोंके लिए बहुतसे बूट थोकमें खरीदकर मोर्चेपर भेजे गये थे। सबके सब बूट बायें पैरके थे। फौजके खानेके लिए ब्रिटेनसे बड़ी मात्रामें खाद्य सामग्री रवाना की गई थी। वह खाद्य सामग्री जब काममें लाई गई तब वह सहारा देनेके बदले नुकसानदिह साबित हुई क्योंकि उसमें बहुत दिनोंका रखा हुआ सड़ा मांस था। यही नहीं कि इसमें केवल व्यापारी ही लखपती बननेके लिए धोखाधड़ी करते थे; बल्कि स्वयं युद्धभूमिपर आये हुए सेनापति और बड़ी संख्या में अमूल्य प्राणोंकी आहुति देनेके लिए कटिबद्ध राजनीतिज्ञ और राज्यके तथाकथित हितचिन्तक नेता एवं मुखिया भी थे। शय्याओंपर पड़े हुए मरणासन्न सैनिकों और सरदारोंके लिए विशाल मात्रामें रवाना की हुई उपयोगी ओषधियाँ उचित अस्पतालों में पहुँचनेके पहले ही अधवीच कहीं गायब हो गई थीं। उनका कहीं पतातक नहीं चला। व्यापारी और तथाकथित देशभक्त सरदार या राज्यतन्त्र के संचालक, देशकी खातिर घर-बार छोड़कर लड़ाईपर गये हुए सैकड़ों गरीब सैनिकोंकी बलि चढ़ाकर, अपनी खाली थैलियाँ भरनेके लिए सैकड़ों उपयोगी और कीमती वस्तुएँ इस प्रकार हजम करते रहे। सेबस्टपोलपर जो सेना पड़ी हुई थी उसका वर्णन करते हुए समाचारपत्रके एक संवाददाताने जब पूरी खबर लिखकर भेजी तब वहाँकी जनता इतनी अधिक उत्तेजित हो गई कि तत्कालीन मंत्रिमण्डलको त्यागपत्र देना पड़ा। इसके अतिरिक्त और भी भयंकर अत्याचारोंकी बहुत बड़ी सूची है। लेकिन वे घटनाएँ इस अन्तिम बोअर युद्धमें घटी घटनाओंके मुकाबिले उपेक्षणीय हैं। इस अन्तिम युद्ध में फौजके उपयोग के लिए खाद्य पदार्थों और कपड़े आदि वस्तुओंके जो ठेके दिये जाते थे उनकी और उन ठेकोंकी पूर्ति किस प्रकार की जाती थी, इसकी बारीकीसे छानबीन करनेपर यह ज्ञात हुआ है कि जनताके पैसेकी निरी बरबादी ही हुई है। यह आपाधापी करनेवाले अधिकारियोंकी खराबियोंका ही नतीजा है। अपने परिचित और कृपापात्र ठेकेदारोंको ठेके देनेवाले विभागोंकी ओरसे आँख मींचकर ठेके दिये जाते थे। इनमें कुछ सामानपर ये लोग ५० प्रतिशतसे ५०० प्रतिशत तक मुनाफा लेते थे। ऐसी अन्धेरगर्दी केवल ब्रिटेनमें ही नहीं थी। जब १८७९ में फ्रांसने हार खाई, सो केवल अपने लक्ष्मीके दास बने हुए सरदारोंकी वजहसे खाई थी। उस युद्धके समय फ्रांसीसी सरकारकी ओरसे प्रत्येक वस्तु तैयार रखी गई थी। प्रारम्भ में सारी व्यवस्था करनेमें लाखों और करोड़ों रुपये खर्च किये गये थे, लेकिन वह सारा खर्च गुप्त रूपसे किया गया था। जो कुछ चीजें संचित की गई थीं वे सब केवल कागज पर ही। पैसा पानीकी तरह बहाया गया था। फिर भी लड़ाईमें आम उपयोगकी वस्तुएँ तब लड़ाईके आरम्भमें ही कम पड़ गई थीं। इस समयकी रूसी-जापानी लड़ाईकी खबरें भी हैरत अंगेज हैं। गत अप्रैल मासमें मंचूरिया स्थित फौजके और खाने-पीने और कपड़ेपर खर्च करनेके लिए ड्यूक ऑफ सरजेसको दस लाख रूबल दिये गये थे। मई मासमें सामानका यह थोक मंचूरियाको रवाना कर दिया गया, परन्तु वह वहाँ पहुँचनेसे पहले ही मास्कोसे सीधा डेंन्जिंग पहुँच गया और वहाँसे

  1. रूस और मित्र राष्ट्रों, अर्थात् तुर्की, इंग्लैंड, फ्रांस और सार्डीनिया के बीच हुई थी (१८५३-१८५६)।