जर्मनी में ले जाकर हजारों पौंड मूल्यका माल मिट्टीके मोल बेच दिया गया। युद्ध में मृत सैनिकों और सरदारोंकी विधवाओंके लिए बड़ी मात्रामें धन इकट्ठा किया गया था, परन्तु उसमें से गरीब विधवाओंके हाथ एक दमड़ी भी नहीं लगी। युद्ध-स्थलमें भेजी गई चीनीकी बोरियों में से चीनीके बजाय बालू निकली थी। ट्रान्स-साइबेरियन रेलवेकी लाइन बिछानेमें जो लाखों रूबल खर्च हुए वे कहाँ उड़ गये, इसका पता नहीं लगा। इसके अतिरिक्त रूसमें व्याप्त अन्धाधुन्धी और रिश्वत व भ्रष्टाचारके असंख्य किस्से लिखे गये हैं।
इसके मुकाबले में जापानी लोगोंका आचरण इससे बिलकुल विपरीत है। वहाँ युद्धकी स्थितिका लाभ उठानेका इरादा किसी भी व्यापारी अथवा अधिकारीने नहीं किया, जिसका परिणाम यह हुआ है कि जापानी सेनाको बहुत थोड़े खर्च में आवश्यक चीजें प्राप्त हो सकती हैं। दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाईके सम्बन्ध में बटलर आयोगने जो विवरण प्रकाशित किया है। उसमें बताया गया है कि उस समय जो अन्धेरगर्दी चली थी वह रूसियोंसे किसी कदर कम नहीं थी। आम जनताके धनका जो उपयोग हुआ वह अत्यन्त खेदजनक समझा जायेगा। इसमें से अधिकतर नुकसान अयोग्य अधिकारियोंके कारण हुआ था। वे अनुभवहीन और अशिक्षित थे। आयोगने और भी बताया है कि ऐसी बड़ी भूलके लिए अधिकारी ही निन्दनीय कहे जाने चाहिए। देशकी जो दौलत भारी-भारी करोंके रूपमें एकत्र की गई थी, उसका बेहद दुरुपयोग किया गया था, और इसके लिए जो अधिकारी उत्तरदायी माने जाते थे वे अपनी आँख और कान बन्द किये बैठे रहे थे। इस सम्बन्ध में सर्वसाधारणके कामको चलानेमें प्रामाणिकता और न्यायके लिए अंग्रेजी राज्यका जो नाम था उसपर बहुत कालिख लगी है। उस समयके अन्धेर गर्दी, भ्रष्टाचार व रिश्वत और अप्रामाणिकता की कोई हद नहीं रही है। आशा है, सरकारकी आँख आयोगकी इस रिपोर्टसे खुलेगी और वह अब भी जो कुछ हो सकता है, करेगी।
- [गुजरातीसे]
- इंडियन ओपिनियन, २४-६-१९०५