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भारतसे गिरमिटिया मजदूर

तलाक है ही नहीं। ऐसे लोगोंकी दृष्टिमें सरकारी कागजोंमें शादियोंका दर्ज किया जाना एक तमाशा है, और जैसा कि संरक्षक (प्रोटेक्टर)ने कहा है:

उच्च वर्गके भारतीयोंमें स्वभावतः शायद ही कभी कोई कठिनाई पैदा होती है। ये कठिनाइयाँ तो केवल वहीं खड़ी होती हैं, जहाँ माता-पिता लड़कीको धन कमानेका साधन मानते हैं। पंजीयनके लिए गये लोगोंमें से बहुत-सी औरतें शपथपूर्वक यह नहीं कह सकीं कि उनके पति मर चुके हैं। इसलिए उनकी शादियाँ दर्ज नहीं की गई।

इस बुराईको कम करनेके दो ही रास्ते हैं। एक तो यह कि भारतसे रवाना होनेसे पहले प्रत्येक स्त्री और पुरुषके बारेमें निश्चित जानकारी प्राप्त कर ली जाये कि वह विवाहित है या नहीं। और दूसरा यह कि, वर-वधूके धर्मके अनुसार जो विवाह हुए हों उनको उपनिवेशमें मान्यता दे दी जाये। यदि उपनिवेशके साधारण कानूनके विरुद्ध कोई बात हो—जैसे, किसी मनुष्यकी एकसे अधिक पत्नियाँ हों, या वे विवाहके योग्य वयकी न हों—तो ऐसी शादियोंको मान्यता न दी जाये। इसके लिए आवश्यक है कि भारतीय विवाहोंकी जाँचके लिए ऐसे अधिकारी नियुक्त कर दिये जायें, जिनकी सचाईपर किसीको शक न हो। उन्हें सब भारतीयोंके विवाहोंके सम्बन्धकी जानकारी एकत्र करनेका काम सौंप दिया जाये। और भारतीयोंके मान्य पुरोहितोंको यह जानकारी तैयार करनेका काम दिया जाये। यद्यपि ऐसे नियम बनानेसे कठिनाई पूरी-पूरी तरह तो हल नहीं होगी, फिर भी हमें इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि वह बहुत हदतक कम जरूर हो जायेगी।

कहा जाता है, जो १,४१२ भारतीय भारतको लौटे, वे अपने साथ १६,५२२ पौंड नकद और ४,८०९ पौंड कीमतके जेवर ले गये। यह एक आदमीके पीछे १५ पौंडसे कुछ ज्यादा पड़ा। यह उसकी पाँच वर्षकी बचत है, अर्थात् एक वर्षकी बचत ३ पौंड हुई। इस रकमको यदि दक्षिण आफ्रिका आनेवाले भारतीयोंकी बचतका नमूना मान लिया जाये तो इससे प्रकट है कि शर्तकी अवधि भारतमें समाप्त करनेका प्रस्ताव अत्यन्त हानिकर है। यह रकम इतनी छोटी है कि उस व्यक्तिको कोई सहारा नहीं दे सकती। पाँच वर्षके कठिन परिश्रमके बाद १५ पौंडकी बचत भारत जैसे गरीब देशमें भी उसे बहुत सहायक नहीं होगी। इतनी छोटी पूंजीसे वह न तो व्यापार कर सकता है, न और कोई काम-धन्धा।

मद्रासके निवासी बहुत मितव्ययी होते हैं। ध्यान देनेकी बात है कि यह उन्होंने एक बार और सिद्ध कर दिया। वे अपने साथ १२,६०० पौंड ले गये, जब कि उनके कलकत्तावाले भाई केवल ८,७०० पौंड ले जा सके। ३१ दिसम्बरको कुल प्रवासी भारतीयोंकी संख्या ८७,००० थी। इनमें से १५,००० उपनिवेशमें पैदा हुए थे। हम देखते हैं कि सोनेकी खानोंमें भी अभी तक भारतीयोंको लिया जा रहा है, यद्यपि यह प्रयोग पूरी तरह सफल साबित नहीं हुआ है। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें जाड़ेके मौसममें कामपर बुलाया गया। यह मौसम उन्हें अनुकूल नहीं पड़ता। जिन्हें जमीनके अन्दर काम करना होता है, उनकी मजदूरी ड्यौढ़ी होती है, अर्थात् १० शिलिंगके बजाय मासिक १५ शिलिंग।

संरक्षकके मुहकमेकी मार्फत २३३ भारतीयों द्वारा २,६७६ पौंड १२ शिलिंग और पोस्ट ऑफिसके द्वारा १,०५,८८९ पौंड भारत भेजे गये। ३१ दिसम्बरको नेटाल सेविग्स बैंकमें १,७८७ भारतीयोंके ४६,३०९ पौंड जमा थे। जब कि इससे पहलेके वर्षमें १,३१० भारतीयोंके ३४,१०८ पौंड जमा थे।