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पत्र : मैक्स नाथनको


मैंने नेटाल गवर्नमेंट गज़टमें, जो यहाँ आज मिला है, १९०३ के प्रवासी अधिनियम संशोधन विधेयकके विषयमें प्रकाशित समाचार पढ़ा है। यह इस सप्ताह के ओपिनियनमें प्रकाशित होना चाहिए, परन्तु मुझे आशंका है कि ऐसा होगा नहीं। मेरा खयाल है कि यह आपका स्पष्ट कर्त्तव्य है कि आपको जिस दिन गज़ट मिले आप उसे उसी दिन देखें और उसमें जो कुछ महत्त्वपूर्ण मिले उसे फीनिक्स भेज दें। यह बिलकुल शोभा नहीं देता कि नेटालकी घटनाएँ घटित होनेके १५ दिन पश्चात् छपें। क्या आपने यह भी ध्यानमें रखा है कि ज्यों ही वे सब विधेयक, जिनके बारेमें हमने प्रार्थनापत्र भेजा है, कानून बन जायें या विधान परिषदमें अंतिम [अवस्थाओं में][१] स्वीकृत हो जायें, हमें [औपनिवेशिक] सचिवके पास आवेदनपत्र भेजना है? इस सूचना के लिए [मुझे] आपपर ही पूरी तरह [निर्भर रहना है।]

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

संलग्न—२ कागज[२]
[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ४६८।

४३५. पत्र : मैक्स नाथनको

[जोहानिसबर्ग]
जून २९, १९०५

सेवामें
श्री मैक्स नाथन
कैंपसे बिल्डिग्स
जोहानिसबर्ग
प्रिय श्री नाथन,

विषय : मीर आलम ऐंड लेवे

मेरे मुहर्रिर श्री पोलक मुझे[३] सूचित करते हैं कि वे इस मामलेमें जब-जब आपके पास गये, आपने तब-तब उनका अनादर किया है। यह दुःखद रूपसे आश्चर्यजनक है, क्योंकि मैं आपसे इस प्रकारके व्यवहारकी आशा नहीं करता था। वे आपके पास एक सीधी-सादी बात पूछनेके लिए गये थे और उन्होंने मुझे बताया है कि आपने रूखे स्वरमें उनसे मिलने या उनको किसी प्रकारकी जानकारी देनेसे इनकार कर दिया। आपने ऐसा क्यों किया है?

[अंग्रेजीसे]
पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ४७०।

आपका सच्चा,
मो॰ क॰ गांधी

  1. बड़े कोष्ठको लिखित यह शब्द तथा आगेके अन्य शब्द कार्यालयकी मूल प्रतिमें अस्पष्ट हैं। यहाँ इनकी पूर्ति हमने की है।
  2. ये उपलब्ध नहीं हैं।
  3. श्री हेनरी एस॰ पोलक बादको गांधीजीके बहुत ही घनिष्ठ साथी बन गये। वे इंडियन ओपिनियनके सम्पादक भी रहे। देखिए आत्मकथा भाग ४, अध्याय १८।