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४३६. पत्र : पारसी रुस्तमजीको

[जोहानिसबर्ग]
जून ३०, १९०५

[सेवामें]
श्री रुस्तमजी जीवनजी
१२, खेतवाड़ी लेन
बम्बई
श्री सेठ पारसी रुस्तमजी,

आपका २० मईका पत्र मुझे मिला। आपने दो पत्र भेजे थे। उन्हें वापस भेजता हूँ। मैंने भाई कैंखुसरू तथा अब्दुल हकको आपका और पत्र लेखकका नाम बताये बिना चिट्ठी[१] लिखी है। जवाब आने में अभी एक-दो दिनकी देर है। आप इस पत्रको बहुत महत्त्व न दें। आपके पास जो हिसाब-किताबके आँकड़े आते हैं आप उनसे अधिक जान सकेंगे। उनमें कोई त्रुटि हो तो मुझे लिखिये। चाहे जो हो आप दूकानकी चिन्ता न करें। हाथमें लिया काम सानन्द पूरा करें।

यह लिखें कि बच्चों की पढ़ाईके बारेमें क्या किया है।

आप नहाने और घूमनेकी क्रिया जारी रख रहे हैं, यह जानकर प्रसन्नता होती है। बच्चोंको भी साथ ले जाते होंगे।

जामे-जमशेदकी जो प्रति भेजी हैं, उसमें अच्छा विवरण दिया है। मेरे सम्बन्धमें ब्यौरा देना जरूरी नहीं था। इस तरह आत्मविज्ञापनके बिना मैं अधिक अच्छी लोकसेवा कर सकता हूँ। आप इस विषयमें मेरे विचार जानते ही हैं।

श्री लॉटनका लाटीवालाके सम्बन्ध में बहुत बड़ा बिल[२] आया है। इस विषय में मैं हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसलिए मैंने दूकानको लिख दिया है कि श्री लॉटनके पास जायें और उनसे बिलकी रकममें उचित कमीकी प्रार्थना करें।

माजी को मेरा सलाम कहें। आप किस-किससे मिले, यह लिखें।

मो॰ क॰ गांधीके सलाम

संलग्न—२
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), सं॰ ४८१-८२।
  1. देखिए "पत्र : अब्दुल हक और फैखुसरुको" जून २७, १९०५।
  2. देखिए "पत्र : जालभाई सोराबजी ब्रदर्सको" जून २३, १९०५।