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२२. न्यायालयका सम्मान क्या है?

नेटालके विद्वान मुख्य न्यायाधीश सर हेनरी बेलने फिर इस प्रश्नको छेड़ा है कि जब एक ब्रिटिश भारतीय न्यायालयमें कदम रखे तब वह न्यायालयका उचित सम्मान किस प्रकार करे? न्यायमूर्तिके विचाराधीन एक मामले में कोई मनोरथ नामक ब्रिटिश भारतीय गवाह खुले सिर न्यायालयमें हाजिर हुआ। न्यायमूर्तिने दुभाषिये (श्री मैथ्यूज़) से पूछा कि गवाहोंके बारेमें भारतमें क्या रिवाज है? दुभाषियेने कहा कि अगर गवाह जूता पहनकर आये तो इसमें न्यायाधीशका अपमान समझा जाता है। न्यायमूर्तिने दुभाषियेसे कहा कि वह कलकत्ताके मुख्य न्यायाधीशसे दरियाफ्त करे कि वहाँका सही-सही रिवाज क्या है। न्यायमूर्तिने कहा कि मैंने तो भारतीयोंको पगड़ी और जूते दोनों पहनकर न्यायालयमें आते हुए देखा है। उन्होंने विनोदपूर्वक यह भी कहा कि अगर वे जूते निकालकर आयें तो उनके गायब हो जानेका डर रहता है। हमारा खयाल है कि इस विषयमें सर हेनरी तिलका ताड़ बना रहे हैं। जहाँतक नेटालसे सम्बन्ध है, यहाँ क्या किया जाये, यह अनेक बार तय हो चुका है। बरसों पहले सर वाल्टर रैगसे[१] भारतीयोंका एक शिष्टमण्डल मिला था। और यह तय हुआ था कि पगड़ी हटानेके स्थानपर भारतीय न्यायासनको सलाम किया करें। जब सन् १८९४ में नेटाल सरकारकी तरफसे उसके प्रतिनिधि भारत गये तो वे वहाँके रिवाजके बारेमें पूरी-पूरी जानकारी लाये थे। और इसका उल्लेख उन्होंने सरकारको पेश किये अपने प्रतिवेदनमें किया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि भारतके चलनमें सम्बन्धित व्यक्तियोंको, चाहे वे पूर्णतः अथवा अंशत: भारतीय वेशभूषामें हों, पगड़ी या जूते उतारनेकी आवश्यकता नहीं है। अर्थात् अगर उनके सिरपर कोई पूर्वी पोशाक है तो उसे नहीं हटाना चाहिए। परन्तु अगर जूते देशी ढंगके बने हैं तो उनको पूर्वी रिवाजके मुताबिक निकाल देना चाहिए। सर वाल्टर यह जानते थे। अत: उन्होंने हुक्म दिया कि बूट या जूते नहीं निकाले जायें, क्योंकि नेटालमें उन्हें निकालना व्यावहारिक नहीं होगा, और दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय निरपवाद रूपसे यूरोपीय ढंगके बूट या जूते ही पहनते हैं । न्यायमूर्तिको हम यह भी याद दिला दें कि जब वे वकालत कर रहे थे, और नेटालके वकील-मण्डलकी शोभा बढ़ा रहे थे, तब उन्होंने कासिम अब्दुल्ला बनाम बेनेटकी तरफसे बड़े वकीलकी हैसियतसे पैरवी की थी। कासिम अब्दुल्लाने श्री बेनेट मजिस्ट्रेटपर मामला इसलिए चलाया था कि उनकी अदालतमें चल रहे एक मामलेमें श्री बेनेटने हुक्म दिया था कि गवाहकी पगड़ी जबरदस्ती उतार ली जाये। इसपर श्री कासिमने हर्जानेकी माँग की थी। तब वे यह फैसला प्राप्त करा सकें थे कि ब्रिटिश भारतीयोंको सिरकी पोशाक या जूता निकालनेके लिए मजबूर नहीं करना चाहिए, किन्तु अदालतमें प्रवेश करनेपर वे सलाम किया करें। तबसे यहाँ यही रिवाज पाला जाता है। और अब इस प्रश्नको पुन: छेड़ना अनुचित होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९०३
  1. पहले नेटालके छोटे न्यायाधीश और बादमें स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश।