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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखना चाहती है। परन्तु इन अनमोल बाजारोंके बारेमें कौमके विरुद्ध जो सूचनाएँ निकाली गई हैं, वे तो इस आश्वासनके एकदम विपरीत हैं। अगर सरकार भारतीयोंको परेशान करनेवाले कानून बनाकर यहाँसे निकाल बाहर करना चाहती है तो वह उन्हें एक बारमें बोरिया-बिस्तर समेत उपनिवेशसे बाहर क्यों नहीं कर देती? ऐसा करना उनके प्रति दया होगी। वे अपनी स्थिति जान जायेंगे और सरकारको अपने कार्योंके लिए झूठमूठके बहाने भी नहीं ढूंढ़ने पड़ेंगे। ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी पुरानी सरकारकी भाँति वह साफ-साफ कह दे कि "यद्यपि आप लोग ब्रिटिश प्रजाजन हैं, तथापि हम आपसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहते; क्योंकि आपकी चमड़ीका रंग गेहुँआ है।" ऐसा करना सख्त कार्रवाई है, और शायद ब्रिटिशोंके लिए अशोभनीय भी। परन्तु इसमें ईमानदारी है। और यदि सरकार सचमुच भारतीयोंपर मेहरबान है और उल्लिखित आश्वासनोंपर अमल करना चाहती है तो अबतक बरती जानेवाली अपनी नीतिमें वह जितनी जल्दी परिवर्तन कर सके, सबके लिए उतना ही अच्छा होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९०३

२४. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय

हम ट्रान्सवालके तथा-कथित भारतीय बाजारोंके प्रश्नपर वापस जानेके लिए कोई क्षमायाचना नहीं करते। वहाँ ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति अत्यन्त नाजुक है, और यह देखते हुए कि इस समय प्रश्नका यह सबसे कमज़ोर हिस्सा है, हम इसीपर अधिक ध्यान केन्द्रित करना अपना कर्तव्य समझते हैं। हम दूसरे स्तम्भमें स्टैन्डर्टनके मजिस्ट्रेटके हस्ताक्षरोंसे युक्त एशियाई लोगोंके नाम निकाली गई सूचना पुन: छापते है। इससे स्पष्ट रूपसे वह भावना व्यक्त होती है, जिससे ब्रिटिश भारतीयोंसे व्यवहारके सम्बन्धमें एशियाई विभागकी नीति संचालित होती प्रतीत होती है। सूचनाके अनुसार बाजारमें बाड़ोंके पट्टेके लिए दरख्वास्तें मांगी गई थीं जिनकी सूची गत मासकी ३० तारीखको बन्द होनी थी। प्रार्थियोंको अपनी दरख्वास्तोंमें यह बताना है कि "किन्हीं विशेष बाड़ोंकी आवश्यकता उन्हें क्यों है और उनको पट्टेपर देनेके लिए उनके दावोंके आधार, यदि उनके पास हों तो, क्या है।" फिर मजिस्ट्रेट दी हुई तारीखपर दरखास्तोंपर विचार करेगा और प्रार्थियोंमें बाड़ोंको निम्नलिखित नियमोंके अनुसार बाँट देगा:

(क) किसी भी ऐसे व्यक्तिको कोई बाड़ा न दिया जायेगा जो वस्तुतः शहरमें नहीं रहता है या व्यापार नहीं करता है और जिसे अपने निवास या व्यापार-सम्बन्धी कार्योंके लिए बाड़ेकी आवश्यकता नहीं है।

(ख) किसी भी व्यक्तिको जितने बाड़े वस्तुतः उसके निवास या व्यापारके लिए आवश्यक हों, उससे अधिक बाड़े न दिये जायेंगे।

(ग) यदि किसी विशेष बाड़ेके लिए एकसे अधिक प्रार्थी हैं तो, किसी दावेदारके पास विशिष्ट व्यवहारके लिए अच्छा दावा न होनेको अवस्थामें, उस बाड़ेका निर्धारण कानून द्वारा या किसी अन्य तरीकेसे किया जायेगा, जिसका फैसला मजिस्ट्रेट करेगा।

अब, जैसा हम इन स्तम्भोंमें कई बार बता चुके हैं, १८८५का कानून ३ भारतीयोंको मुहल्लों, बाजारों, या बस्तियोंमें, जो उनके लिए निर्धारित किये जायें, भूमि-सम्पत्ति रखनेका