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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/६३

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२७. "ईस्ट रैंड एक्सप्रेस" और उसके तथ्य

बताया जाता है कि स्पेलोनकेन जिलेमें भारतीयोंको परवाने दिये गये हैं। इस विषयपर हमारे सहयोगी ईस्ट रैंड एक्सप्रेसने अपने श्रेष्ठ साप्ताहिकके हालके एक अंकमें "गुप्त कारगुजारियाँ" शीर्षकसे एक सम्पादकीय उपलेख प्रकाशित किया है। सहयोगी कहता है:

स्पेलोनकेनमें वास्तवमें जो कुछ हो रहा है वह जानना एक दिलचस्प बात होगी। पता चला है कि इस तथ्यके बावजूद कि युद्धसे पहले वहाँ भारतीयोंको परवाने नहीं दिये जाते थे, अब अधिकारियोंने कुछ भारतीय व्यापारियोंको वहाँ कारोबार करनेके लिए परवाने दिये है। सन् १९०३ की सूचना ३५६ का क्या हुआ, यदि उसकी धाराएँ इतनी खुल्लम-खुल्ला तोड़ी जा सकती हैं? उस सूचनाकी उपधारा २ में स्पष्ट कहा गया है : 'किसी भी एशियाईको निर्दिष्ट बाजारोंके अतिरिक्त अन्यत्र व्यापार करनेके नये परवाने न दिये जायेंगे।' अब स्पेलोनकेनमें तो बाजार नहीं हैं। वह तो एक ऐसा विस्तीर्ण क्षेत्र है, जहाँ मुख्यतः वतनी लोग बसे हैं। प्रतीत होता है, सरकार जान-बूझ कर अपनी घोषणाका उल्लंघन कर रही है और एशियाइयोंके लिए असीमित स्पर्धाका द्वार खोल रही है। यदि सरकार एशियाइयोंके सम्बन्धमें नेटाली कानूनोंको लागू करनेका इरादा रखती है, तो वह खुल्लम-खुल्ला ऐसा करे। तब हम अपना कर्तव्य सोच लेंगे; किन्तु जैसी गुप्त कार्रवाईका ऊपर जिक्र किया गया है, वैसी कार्रवाइयोंका हमें अन्त कर देना चाहिए।

अब, हमें जो सूचना मिली है वह ऊपरकी सूचनाके विपरीत है। हमें ज्ञात हुआ है कि दो भारतीय अपने पुराने परवानोंसे वंचित होते-होते बचे। संयोगसे हमें यह बात भी ज्ञात है कि पीटर्सबर्ग जिलेसे ही, जिसके अन्तर्गत स्पेलोनकेन स्थित है, भारतीय व्यापारियोंकी अधिकांश मुसीबतें शुरू होती हैं। हमारा विश्वास है कि हमारे सहयोगीको जो सूचना दी गई है वह वफादार भारतीयोंके ऊपर और अधिक मुसीबतें लाने में मदद देनेका एक प्रस्ताव-मात्र है। हमारे सहयोगी और हमारे बीच भारतीयोंके प्रश्नपर एक सच्चा मतभेद है; किन्तु हमारा खयाल है कि हमारा सहयोगी इसपर विचारके समय तथ्योंको गलत रूपमें पेश करना नहीं चाहता। अतः हम उससे कहते हैं कि वह इस बातकी जाँच करे कि हमने जो कुछ ऊपर कहा है वह तथ्योंका सही विवरण है या नहीं?

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९०३