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२८. ट्रान्सवालमें यात्रा

हमारे सहयोगी ट्रान्सवाल लीडरने वतनी रेल-यात्रियोंके सम्बन्धमें एक गुमनाम लेखककी खबरको प्रमुखता दी है और एक स्थानीय रेलगाड़ीके पहले दर्जे के डिब्बेमें वतनी यात्रियोंको स्थान देनेकी रेलवे-अधिकारियोंकी गुस्ताखीपर बहुत क्रोध प्रकट किया है। कथित संवाददाताके लेखानुसार बात यह दिखाई देती है कि उसको जॉर्ज गॉशसे आनेवाली रेलगाड़ीके पहले दर्जे के डिब्बेमें चार वतनी यात्री बैठे मिले। अन्य सब डिब्बोंमें यूरोपीय यात्री बैठे थे। संवाददाताके पास पहले दर्जेका टिकट था और वह भी उसी गाड़ीसे जाना चाहता था। जब उसको दूसरे किसी डिब्बेमें स्थान न मिला तब, ऐसा प्रतीत होता है कि, वह उस डिब्बेके पाससे निकला जिसमें वतनी यात्री बैठे थे। यह उसकी सहिष्णुताकी सीमासे परे था। वह नहीं समझ सकता था कि वे पहले दर्जेमें यात्रा क्यों करते हैं। उन्होंने भी किराया दिया है, यह प्रश्न उसके लिए विचारणीय न था। वह गार्डके पास गया और गार्डने यह कहा प्रतीत होता है कि वतनी यात्रियोंने भी पहले दर्जेका किराया दिया है, अतः उनको भी उस गाड़ीके पहले दर्जेमें यात्रा करनेका उतना ही अधिकार है, जितना स्वयं संवाददाताको। गार्डके इस उत्तरके कारण वह संवाददाता अखबारोंमें शिकायत छपाने दौड़ पड़ा। अपने पत्रमें उसने वतनी लोगों और भारतीयोंको मिलाजुला दिया है। ऐसा ही हमारे सहयोगीने भी किया है। इस महादेशमें निस्सन्देह यह असाधारण बात नहीं है। इससे उस खतरेका पता चलता है, जिसका सामना हमारे देशवासियोंको दक्षिण आफ्रिकामें सामान्यतः, और ट्रान्सवालमें मुख्यतः, करना है। यहाँ "वतनी, कुली और भारतीय" शब्दोंका ऐसा प्रयोग करनेकी एक प्रवृत्ति है, मानो ये सब एक ही हों। लीडरने रेलवे अधिकारियोंसे अपील की है कि वे वतनी लोगोंको और कुलियोंको—ब्रिटिश भारतीयोंको वह इसी नामसे पुकारना पसन्द करता है—पहले दर्जेमें यात्रा करनेसे तुरन्त वर्जित कर दें। वह यह भूल जाता है कि रेलवेके नियमोंमें इस समय न तो भारतीयोंका और न वतनी लोगोंका पहले दर्जेमें यात्रा करना वर्जित है। और केवल वतनी लोगोंके सम्बन्धमें यह व्यवस्था है कि वे अपनी अर्जी गाड़ी रवाना होनेके विज्ञापित समयसे कमसे-कम आधा घंटा पूर्व दें। यदि वे चार या चारसे ज्यादा एक साथ यात्रा करनेवाले होंगे, तो उनकी अर्जीपर विशेष रूपसे विचार किया जायेगा। हम अपने सहयोगीको स्मरण दिला सकते हैं कि पुराने शासनमें भी भारतीयोंकी पहले दर्जेमें यात्रा वर्जित न थी। हम उसे यह तथ्य भी याद दिलाना चाहते हैं (यद्यपि हमें बतलाया जाता है कि अखबारोंके इतिहासमें पूर्व उदाहरणोंका कोई मूल्य नहीं होता) कि ट्रान्सवाल लीडर युद्धसे पूर्व रंगदार लोगोंके अधिकारोंका समर्थक था। इस पत्रकी सम्पादकीय कुर्सीको सुशोभित करनेवाले श्री पेकमैनकी अपेक्षा अधिक सहानुभूति रखनेवाला उनका कोई दूसरा मित्र नहीं था।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९०३