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२९. लेडीस्मिथके भारतीय दूकानदार

नेटाल विटनेस और टाइम्स ऑफ नेटालने लेडीस्मिथके भारतीय दूकानदारोंके प्रति श्री लाइन्सकी कार्रवाईपर और इस धमकीपर, कि यदि वे यूरोपीयोंके साथ अपनी दूकानें बन्द करना मंजूर न करेंगे तो उनके परवाने नये न किये जायेंगे, जो टिप्पणियाँ लिखी है, उनको स्थान देते हुए हमें बहुत प्रसन्नता होती है। टाइम्स ऑफ नेटाल अपने सदाके तरीकेसे ब्रिटिश भारतीयोंकी निन्दा करनेके बाद आगे कहता है:

किन्तु, इस सबके बावजूद, प्रश्न यह है कि लेडीस्मिथके टाउन क्लार्क श्री लाइन्सकी यह कार्रवाई कहाँतक उचित है कि वे सब अरब व्यापारियोंको इकट्ठा करें और उनको अपनी दुकानें उन्हीं समयोंपर बन्द करनेका आदेश दें जिनपर उनके यूरोपीय साथी बन्द करते हैं; और उनको वे ही छुट्टियाँ भी मनानेको कहें; और अन्यथा करनेपर उनके परवाने वापस लेनेकी धमकी दें। यह एक परवाना-अधिकारीके अधिकारोंका बहुत ही मनमाना उपयोग प्रतीत होता है। जब कोई व्यक्ति एक बार परवाना ले लेता है और सामान्यतः देशके और मुख्यतः अपनी नगरपालिकाके उपनियमोंका पालन करता है तब यह किसी भी स्थानीय अधिकारीके अधिकारोंके बाहर होना चाहिए कि वह उसको इतनी बुरी तरहसे बरबाद कर सके, जैसा श्री लाइन्स कहते हैं; क्योंकि यदि इस नवीनतम अफसरशाही उदाहरणका उचित निष्कर्ष निकाला जाये तो लेडीस्मिथका यह निरंकुश अधिकारी और ऐसे ही पदोंपर नियुक्त उपनिवेशके अन्य अधिकारी किसी भी यूरोपीयको अपनी दूकान जिस समय चाहें उस समय बन्द करनेका आदेश दे सकते हैं। यह एक नाजुक विषय है, आप इसे पसन्द करें या न करें; किन्तु 'अंग्रेजका घर उसका गढ़ है', यह पुरानी उक्ति लेडीस्मिथ, इस विषयको हल करनेसे पूर्व ध्वस्त कर देनी पड़ेगी।

यह कथन निस्सन्देह उचित है और विशुद्ध कानूनी और ब्रिटिश दृष्टिकोणसे भी श्री लाइन्सका प्रस्ताव मनमाना और अत्याचारपूर्ण है। फिर भी हम उस मतपर दृढहैं, जो हमने व्यक्त किया है। श्री लाइन्सने जो मनमाना ढंग अख्तियार किया उसके बावजूद लेडीस्मिथके ब्रिटिश भारतीयोंके लिए यह बहुत ही गौरवास्पद होगा कि वे श्री लाइन्सके सुझावोंको मान लें। निस्सन्देह शर्त यह है कि वे व्यावहारिक हों। यदि वे ऐसा कर सकें तो उनके हाथोंमें आत्मरक्षाका एक बहुत अच्छा हथियार होगा और इससे लेडीस्मिथमें उनका बहुत-सा विरोध जोर पड़ जायेगा। जबतक विक्रेता-परवाना अधिनियम वर्तमान रूपमें उपनिवेशकी कानूनी पुस्तकोंमें मौजूद है तबतक भारतीय समाजको जागरूक रहना आवश्यक होगा और जहाँ झुकना उचित हो वहाँ झुकना भी पड़ेगा, भले ही उसमें कुछ आर्थिक हानि भी उठानी पड़े; क्योंकि वे (अर्थात् भारतीय व्यापारी) पूर्णतः परवाना-अधिकारियों, नगर-परिषदों या स्थानीय निकायोंकी दयापर निर्भर है, जैसा बार-बार संकेत किया जा चुका है। कुछ इक्के-दुक्के उदाहरण ऐसे हो सकते हैं जिनमें इंग्लैंडके अधिकारियोंसे सहायता मिल सकती है। फिर भी यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यह तन्त्र बड़ी मन्द गतिसे चलता है। अतः सबसे सुरक्षित बात यह है कि जैसी