स्थिति है उसे स्वीकार किया जाये। इस कानूनको हटवानेके उद्देश्यसे सब प्रयत्न किए जायें और इस दरमियान इस विधिसे कार्य किया जाये जिससे यह प्रकट हो जाये कि हमारे ऊपर जो निर्योग्यताएँ लगाई गई हैं, वे किस प्रकार अत्यन्त अनुचित हैं।
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९०३
३०. पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरके सचिवको
ब्रिटिश भारतीय संघ
२५ व २६ कोट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
पो० ओ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
नवम्बर ७, १९०३
निजी सचिव
परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर
प्रिटोरिया
आपका तारीख ४ का पत्र[१] क्रमांक २१३१, मिला।
जैसा कि मैं कह ही चुका हूँ, इस वर्षकी विज्ञप्ति ३५६ को लेकर ब्रिटिश भारतीय संघने जो प्रतिवेदन[२] किया था उसके सम्बन्धमें परमश्रेष्ठके उत्तरोंके मामलेपर बल देनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है। किन्तु मैं यह आशा करनेकी धृष्टता अवश्य करता हूँ कि परमश्रेष्ठके सम्मुख प्रस्तुत तथ्योंको देखते हुए संघकी विनीत प्रार्थनापर कृपापूर्ण विचार किया जायेगा। और इस सम्बन्धमें मुझे परमश्रेष्ठका ध्यान लॉर्ड मिलनर द्वारा श्री चेम्बरलेनको भेजे गये खरीतेकी ओर आकर्षित करनेकी अनुमति दी जाये। यह खरीता[३] ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके बारेमें उदार नीति निश्चित करता हुआ लगता है।
मैं हूँ,
आपका विनम्र सेवक,
मो० क० गांधी
प्रिटोरिया आर्काइव्ज़ : एल० जी० २१३२, एशियाटिक्स १९०२-१९०६।
- ↑ यह पत्र गांधीजीके २ नवम्बरके पत्रका उत्तर था। गांधीजीका पत्र उपलब्ध नहीं है।
- ↑ लेफ्टिनेंट गवर्नरने लिखा था कि उनके उत्तरोंके अर्थोंमें किसी अन्तरकी कोई गुंजाईश नहीं है। उन्होंने लिखा: "हर जगह बरते गये शब्द साफ और स्पष्ट हैं और वे सूचनाके अंतर्गत ऐसे छूट पानेवालोंकी संख्याको साफ तौरपर सीमित करते हैं जो युद्धके पहले व्यापार करनेके परवाने रखते थे।"
- ↑ देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ४५२-५३।