पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३१. टिप्पणियाँ[१]

जोहानिसबर्ग
नवम्बर ९, १९०३

ट्रान्सवालके भारतीय प्रश्नपर टिप्पणियाँ; ९ नवम्बर १९०३ तक

इस समय सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न, इस वर्षकी सूचना ३५६ पर, जो कि बाजार-सम्बन्धी सूचनाके नामसे मशहूर है, अमलका है।

वर्ष समाप्त होनेवाला है, इसको देखते हुए ब्रिटिश भारतीयोंका एक शिष्टमण्डल परमश्रेष्ठ लफ्टिनेंट गवर्नरसे मिलने गया था।[२] वह उन्हें इस बातके लिए तैयार करना चाहता था कि जो ब्रिटिश भारतीय इस समय नियमपूर्वक मिले हुए परवानोंके सहारे उपनिवेशमें व्यापार कर रहे हैं उन सबके परवानोंको मान लिया जाये।

यह ध्यानमें रखनेकी बात है कि, उक्त सूचनापर कठोरतासे अमल किया गया तो इस वर्षको समाप्तिके पश्चात् बस्तियोंसे बाहर वे ही लोग व्यापार कर सकेंगे, जिनके पास युद्ध छिड़नेके समय परवाने थे।

इसलिए दो प्रकारके भारतीय व्यापारियोंके मामलोंपर विचार होना बाकी है। पहले वे, जो युद्धसे पहले व्यापार तो करते थे, परन्तु जिनके पास परवाने नहीं थे; और दूसरे वे, जिन्हें ब्रिटिश अधिकार हो जानेके पश्चात् ब्रिटिश अधिकारियोंने शरणार्थी होनेके आधारपर परवाने दिये थे।

बाजार-सम्बन्धी सूचनाके विषयमें परमश्रेष्ठके साथ जो पत्र-व्यवहार हुआ था, उससे आशा हो चली थी कि पहले प्रकारके लोगोंके परवानोंके सम्बन्धमें कोई कठिनाई नहीं खड़ी होगी, क्योंकि युद्धसे पहले प्रायः सभी ब्रिटिश भारतीय ट्रान्सवालमें परवानोंके बिना ही (क्योंकि वे दिये ही नहीं जाते थे), परवाना शुल्कके वादेके आधारपर या गोरे मित्रोंके नामपर व्यापार करते थे; और उस समयकी सरकार भी इसे जानती थी।

परन्तु ब्रिटिश भारतीयोंके दुर्भाग्यसे परमश्रेष्ठने इसका दूसरा ही अर्थ लिया और कहा कि उनका मतलब संघको यह सूचित करनेका कदापि नहीं था कि अगले ३० दिसम्बरके पश्चात् बस्तियोंसे बाहर उनको छोड़कर किसीको व्यापार न करने दिया जायेगा, जिनके पास युद्धसे पहले भी सचमुच ऐसा करनेके परवाने थे।

परन्तु जब परमश्रेष्ठको यह ज्ञात हुआ कि युद्धसे पहले सैकड़ों भारतीय ब्रिटिश सरकारके संरक्षणके कारण परवानोंके बिना व्यापार करते थे, तब उन्होंने कहा कि इस प्रश्नपर वे कार्यकारिणी-परिषदकी बैठकमें विचार करेंगे।

इसलिए आशा की जा सकती है कि प्रथम प्रकारके परवानेदारोंको कुछ राहत मिल जायेगी।

परन्तु आजकल हमें इतनी अधिक निराशाओंका सामना करनेका अभ्यास हो चुका है कि यदि हम यहाँ स्थितिका स्पष्ट वर्णन करके यह बतला दें कि इन लोगोंको बाजारों या बस्तियोंमें भेज देनेका परिणाम क्या होगा, तो शायद गलती नहीं होगी।

  1. गांधीजीने ये टिप्पणियाँ दादाभाई नौरोजीको भेजी थीं। दादाभाई नौरोजीने बदस्तूर इनकी एक प्रति भारतमन्त्रीको भेजी थी और इंडियाने इन्हें खरीतेके रूपमें अपने ४-१२-१९०३ के अंकमें प्रकाशित किया था।
  2. ३० अक्टूबरको।