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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

—ज्यों-की-त्यों रह जाती हैं। ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी सरकारका रंगदार लोगोंके प्रति ऐसा रवैया है। अत: जबतक उपनिवेश-कार्यालय साम्राज्यकी श्वेत प्रजाओंकी दशाके सम्बन्ध में अपने विशेषाधिकारका प्रयोग करनेका मार्ग नहीं अपनाता, तबतक उन सैकड़ों ब्रिटिश भारतीयोंको बड़ी कठिनाईका सामना करना होगा, जो ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें अपनी आजीविका कमानेके उद्देश्यसे प्रवास करने और बसनेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि ब्रिटिश भारतीयोंके इंग्लैंडवासी मित्र हमारी इन बातोंको देखेंगे, उनका अध्ययन करेंगे और हमारी रक्षा करेंगे एवं उपनिवेश-कार्यालयसे आग्रह करेंगे कि वह सम्राटकी राजभक्त प्रजाके प्रति अपने कर्तव्यका पालन करे। अपने राजस्व-सम्बन्धी आन्दोलनमें श्री चेम्बरलेनने बड़ी मुस्तैदीसे इस तथ्यपर जोर दिया है कि भारतमें लड़ाकू शक्तिका अक्षय भंडार सुरक्षित है, जिसका उपयोग आवश्यकताके समय साम्राज्य रत्ती-भर भी झिझके बिना कर सकता है। हाँ, भारत समस्त साम्राज्यकी सेवामें अपना भाग अदा करनेके लिए सदैव तैयार है। क्या परम माननीय महानुभाव उपनिवेशोंको भी अपने कर्तव्योंका पालन करनेके लिए समझानेमें अपने प्रभावका उपयोग करेंगे?

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९०३

३३. स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सन

मृत्युने स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सनके रूपमें हमारे बीचसे नेटालके एक निर्माताको उठा लिया है। उत्तरदायी शासनमें प्रथम प्रधानमन्त्रीके रूपमें उन्होंने अपने पीछे उपनिवेशकी उपयोगी सेवाका एक ऐसा लेखा छोड़ा है, जिससे आगे बढ़ना दूर, बराबरी करना भी किसीके लिए सरल न होगा। जैसा अभी हालकी घटनाओंसे सिद्ध हो चुका है, यह अत्यन्त सौभाग्यकी बात थी कि जब उपनिवेशको स्वशासन दिया गया, जिसकी प्राप्तिमें सर जॉनका हाथ प्रमुख था, तब उसका शासन उनको और उनके ही जैसे उनके योग्य साथी स्व० परम माननीय श्री हैरी एस्कम्बको सौंपा गया। उन्होंने इसका कार्य जिस उत्तम रूपसे आरम्भ किया, उसके बिना उत्तरदायी शासनमें नेटालकी जो स्थिति होती उसकी कल्पना करना कठिन नहीं है। सम्पादकसे प्रधानमन्त्री बनना बहुत बड़ी उन्नति है। इससे उस व्यक्तिकी खरी योग्यता प्रकट होती है, जो अब हमारे बीच में नहीं है। अपनी योग्यता, उत्साह और उद्देश्य-निष्ठासे उन्होंने नेटाल मर्क्युरीको नेटालकी एक शक्ति बनाने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने उपनिवेश सरकारपर उन सब गुणोंका और भी उत्कृष्ट रूपमें प्रभाव डाला। इसके लिए सम्राटने उनको के० सी० एम० जी० की उपाधि प्रदान करके मानो उनकी योग्यताको मान्यता प्रदान की थी। ब्रिटिश भारतीय इन माननीय महानुभावको मताधिकार अपहरण विधेयकके[१] निर्माताके रूपमें भली भाँति याद रखेंगे। ब्रिटिश भारतीयोंका उस समय उनके विचारोंसे मतभेद था। और इसका कारण था; किन्तु कोई यह नहीं कह सकता कि उस विधेयकको प्रस्तुत करने में वे ऊँचे इरादोंके अतिरिक्त किन्हीं और बातोंसे प्रेरित थे। वह विधेयक, जो बादमें परिवर्तित हुआ, उपनिवेशकी कानूनी पुस्तकोंका अभीतक अंग है। अच्छा होता कि उस विधेयकको प्रस्तुत करते समय उन्होंने जो

  1. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३१९।