जिला चिकित्सा अधिकारीका पत्र पढ़ा गया, जिसमें उन्होंने लिखा है कि वे एशियाई बाजारके लिए चुनी गई जगहको अनुपयुक्त मानते हैं, क्योंकि बरसातके दिनोंमें वहाँ पानी भर जाता है। यह बताया गया कि बाजारके २०० बाड़े होंगे, जिनमें से कमसे-कम तीन-चौथाईकी जरूरत वर्षोंतक नहीं पड़ेगी, और यह कि यद्यपि कुछ बाहरी बाड़े नीची जमीनपर हैं, तथापि अधिकांश तो बहुत ही सुन्दर जगहपर हैं। फिर, यह प्रश्न स्वास्थ्य-निकायके अधिकार-क्षेत्रसे बाहरका है, क्योंकि सरकार उस जगहको पसन्द कर चुकी है, उसका सर्वेक्षण करा चुकी है और उसकी बाजारके रूपमें घोषणा भी कर चुकी है।
दूसरे शहरोंमें भी बाजारोंकी सिफारिश करनेवाले स्वास्थ्य-निकाय इसी कोटिके हैं। फिर भी लॉर्ड मिलनरने उपनिवेश कार्यालयको यह आश्वासन दिया है कि बाजारोंके लिए अच्छे स्थान चुने जायेंगे, स्वास्थ्यकी दृष्टिसे भी और व्यापारकी दृष्टिसे भी।
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९०३
३५. श्वेत-संघ और ब्रिटिश भारतीय
गत ५ तारीखको जोहानिसबर्गके अन्तर्गत फोर्ड्सबर्गमें श्वेत-संघके तत्वावधानमें एक सभा हुई थी, जिसमें कई प्रश्नोंपर बहस हुई। अखबारोंमें छपे समाचारोंसे ज्ञात होता है कि कार्रवाई "अत्यधिक सजीव" रही, "बीच-बीच में शोर-गुल भी हुआ।" श्री ए॰ मैक-फारलेन सभापति थे और लगभग अस्सी व्यक्ति उपस्थित थे। सभापतिने अपने प्रारम्भिक भाषणमें एशियाइयोंके प्रवासपर कुछ विस्तारके साथ अपने विचार प्रकट किये। उन्होंने कहा:
श्वेत-संघको स्थापना एक वर्ष पहले इस भावनाके कारण हुई थी कि जोहानिसबर्गमें अवांछनीय श्रेणीके विदेशियोंकी बाढ़-सी आ गई है। वे छोटी-छोटी दूकानों तथा व्यापारी हलकोंमें भरे जा रहे हैं और बहुत-से मामलोंमें हमारी जातिके उन लोगोंका स्थान ले रहे हैं, जो लड़ाईके कारण यहाँ नहीं आ पाये और जिन्होंने लड़ाईका पूरा धक्का सहा। … उन्होंने भाषणमें बताया कि लड़ाईके बाद लौटनेके लिए एशियाइयोंको आसानीसे अनुमतिपत्र मिलते जा रहे हैं, ब्रिटिशोंको उन्हें पाने में कठिनाई हो रही है और एशियाई उनके लिए बेईमानीके तरीकोंसे भी काम ले रहे हैं। ट्रान्सवालके कानूनके अनुसार चीनी और भारतीय परवाने रखनेके अधिकारी नहीं हैं। परन्तु वर्तमान सरकारने वह कानून उन चीनियों और भारतीयोंके लिए मुल्तवी कर दिया है, जो लड़ाईसे पहले गैर-कानूनी तौरपर व्यापार कर रहे थे। … यहाँ यह सवाल पूछा जा सकता है कि जब भारत-सरकारने हमें रेलवेके कामके लिए अपने यहाँ मजदूरोंकी भरती करनेकी आज्ञा देनसे इनकार कर दिया है तब क्या हम यह मांग नहीं कर सकते कि यहाँ जितने भी भारतीय हैं उन सबको वापिस भारत भेज दिया जाये, क्योंकि व्यापारियोंके रूपमें उन्होंने इस देशकी वास्तविक उन्नतिमें बाधा पहुंचानेका काम किया है?