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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/७५

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भारतीय और "ईस्ट रेड एक्सप्रेस"


ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें श्री मैक-फारलेनके ये विचार है। अब वास्तविकताको देखिए। सरकारी कागजातके अनुसार जनवरी और अक्तूबरके बीच जहाँ यूरोपीयोंको २८,००० अनुमतिपत्र जारी किये गये, वहाँ ब्रिटिश भारतीयोंको युद्ध-विरामकी घोषणाके बादसे लेकर अभीतक १०,००० से भी कम अनुमतिपत्र दिये गये हैं। इसके अलावा, हम पहले ही जो अंक प्रकाशित कर चुके हैं उनसे ज्ञात होगा कि ये सबके-सब २८,००० यूरोपीय गैर-शरणार्थी हैं। दूसरी तरफ, कुछ दर्जन ब्रिटिश भारतीयोंको छोड़कर सारेके-सारे अनुमतिपत्र पानेवाले भारतीय शरणार्थी हैं। अब, अनुमतिपत्रोंके लिए एशियाइयोंपर मनमाने तरीके काममें लानेके विषयमें हम सुयोग्य सभापतिका ध्यान केवल उन मामलोंकी तरफ दिलाना चाहते हैं, जो हाल ही में कैप्टन हैमिल्टन फाउलने कितने ही यूरोपीयोंपर बगैर अनुमतिपत्रके ट्रान्सवालमें आने अथवा अनुमतिपत्रोंका अवैध व्यापार करनेके अपराधमें दायर किये हैं। यूनानके सहायक उप-राजप्रतिनिधि पर अवैध अनुमतिपत्र बेचनेके अपराधमें भारी जुर्माना हुआ था। हमारा खयाल है कि वे केवल यूरोपीयोंके लिए ही अनुमतिपत्र प्राप्त करनेका काम करते थे। सभापतिका यह सुझाव उनके भाषणके सम्पूर्ण भावके अनुरूप ही है कि जो भारतीय ट्रान्सवालमें वर्षोंसे बसे हुए हैं और जिन्होंने यहाँ जमीनजायदाद ले ली है और जो उपनिवेशमें स्वतन्त्र आदमीकी हैसियतसे आये हैं, उनको तुरन्त स्वदेश भेज दिया जाये; क्योंकि गुलामीकी-सी शर्तोंपर भारत-सरकारने ट्रान्सवालको मजदूर भेजनेसे इनकार कर दिया है। मौजूदा सरकारपर इन्हीं महानुभावोंके विरोधका असर पड़ता है। इन्हीं की प्रेरणासे बाजार-सूचनाएँ जारी हुई हैं, जिनकी वजहसे सैकड़ों ब्रिटिश भारतीय दूकानदार इस वर्षके अन्ततक भिखारी बना दिये जायेंगे। इस सभाका सम्पूर्ण ब्योरा डेली मेलसे हम अन्यत्र उद्धृत कर रहे हैं, जिससे पाठकोंको पता चलेगा कि ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ किस प्रकारका विरोध काम कर रहा है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९०३

३६. भारतीय और "ईस्ट रैंड एक्सप्रेस"

हमारा सहयोगी अभीतक भारतीय प्रश्नमें उलझा हुआ है। उसके एक ताजा अंकमें आधेसे अधिक कालम एक भारतीय द्वारा ईस्ट रैंड जिले में जमीनके एक टुकड़ेकी खरीदके मामलेसे भरा है। तथ्य जो उसमें दिये गये हैं काफी सही हैं। हमारे पास भी सारी हकीकत है। तथापि, हम अपने सहयोगीको एक बहुत ही आवश्यक बातकी याद दिलाना चाहेंगे, वह यह कि, इस जमीनकी खरीदारी पूर्णत: सही तरीकेसे हुई है। जब ट्रान्सवालपर अंग्रेजोंने अधिकार किया तब लोगोंने—जिनमें सरकारी अधिकारी, सर्वसाधारण जनता और स्वयं भारतीय भी शामिल है—समझ लिया कि पुराने भेदभाव-भरे कानून अब नहीं रह गये हैं। लॉर्ड मिलनरके खरीते और स्वर्गीया सम्राज्ञीके मन्त्रियोंके भाषण लोगोंके दिमागमें ताजा थे। उनको ध्यानमें रखकर वे इस स्वाभाविक नतीजेपर पहुंचे कि जिस बुराईको दूर करनेके लिए पिछली लड़ाई लड़ी गई थी, वह अब नहीं रही होगी। ब्रिटिश साम्राज्यके दूसरे किसी भी भागमें ब्रिटिश प्रजाजनोंके विरुद्ध ऐसे दुभाँति करनेवाले कानून नहीं हैं। इसलिए, उस भारतीयने जमीन खरीद ली और उस गोरे मनुष्यने पूरी तरह यह समझकर वह उसे बेच दी कि जमीनकी रजिस्ट्री हो जायेगी। यही नहीं, रजिस्ट्रारके दफ्तरमें रजिस्ट्रीकी दरखास्त पेश भी हो गई। जब यह पता लगा कि