३७. पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरके सचिवको
ब्रिटिश भारतीय संघ
२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
पो० ऑ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
नवम्बर १४, १९०३
निजी सचिव
परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर
महोदय,
आज जिनके पास व्यापारिक परवाना है उन्हें हटानेका प्रश्न उन लोगोंके लेखे इतना महत्त्वपूर्ण और गंभीर है कि मैं फिर परमश्रेष्ठका ध्यान बँटानेका साहस कर रहा हूँ।
शिष्टमण्डलने परमश्रेष्ठकी सेवामें निवेदन किया था कि लॉर्ड मिलनरका श्री चेम्बरलेनके नाम तारीख ११ मईका खरीता ब्रिटिश भारतीयोंके इस मतकी पुष्टि करता है कि इस वर्षकी सूचना ३५६ से वर्तमान परवानों पर असर नहीं पड़ेगा। मैं समर्थनमें विनयपूर्वक खरीतेसे निम्न अंश उद्धृत कर रहा हूँ:
परन्तु सरकार इस बातकी चिन्तामें है कि वह इस कामको (कानूनके अमलको) देशमें पहलेसे बसे हुए भारतीयोंका बहुत खयाल रखते हुए और निहित स्वार्थोंके प्रति—जहाँ इन्हें कानूनके विरुद्ध भी विकसित होने दिया गया है—सबसे अधिक खयाल रखते हुए करे। … लड़ाईसे पहले जो एशियाई लोग उपनिवेशमें थे केवल उन्हींका सवाल होता तो महामहिमकी सरकारके मनके लायक नये कानून बननेतक हम राह देख सकते थे। परन्तु यहाँ तो नये-नये आनेवालोंका तांता लगा रहता है और वे व्यापार करनेके परवाने माँगते रहते हैं। और, यूरोपीय लोग बिना सोचे-समझे परवाने देते जाने और एशियाइयोंको उनके लिए ही विशेष रूपसे पृथक बनाई गई बस्तियोंतक सीमित रखनेका कानून लागू करने में सरकारकी लापरवाहीके विरुद्ध निरन्तर प्रतिवाद और अधिकाधिक तीव्र रोष प्रकट कर रहे हैं। ऐसी दशामें एकदम खामोश बैठे रहना असम्भव हो गया है। … जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, लड़ाईके पहले यहाँ जिन एशियाइयोंके जो निहित स्वार्थ थे उन्हें सरकार स्वीकार करनेको तैयार है। परन्तु दूसरी तरफ, उसे लगता है कि कानूनके खिलाफ नये निहित स्वार्थोंको खड़े होने देना उचित नहीं होगा। लड़ाईके दरमियान और युद्धविरामके बाद, कितने ही नवागन्तुकोंके नाम व्यापारके अस्थायी परवाने जारी कर दिये गये थे। इन परवानोंको मियाद ३१ दिसम्बर, १९०३ तकके लिए बढ़ा दी गई है। परन्तु इन परवानेदारोंको हिदायतें दे दी गई हैं कि उस तारीखको उन्हें अपने लिए निश्चित सड़कों, या बाजारोंमें चले जाना होगा।