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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय


उपर्युक्त उद्धरणसे स्पष्ट है कि लॉर्ड मिलनरके मनपर छाप यह है कि व्यापारिक परवाने नवागन्तुकोंको दिये गये हैं, अतएव केवल उन्हें ही सड़कों या बाजारोंमें हटाया जाना चाहिए। किन्तु जैसा कि शिष्टमण्डलने निवेदन किया है, जिन्हें बाजारोंके बाहर व्यापार करनेके परवाने दिये गये हैं, अगर उनमें कोई नवागन्तुक हैं, तो उनकी संख्या बहुत कम है।

लॉर्ड मिलनर फिर कहते हैं:

प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयों अथवा सुसभ्य एशियाइयों पर हम कोई निर्योग्यताएँ लगाना नहीं चाहते। … वह (सरकार) तीन महत्त्वपूर्ण बातोंमें इन एशियाइयोंके प्रति रियायत दिखा रही है, जो पिछली हुकूमतने नहीं दिखाई थी।

इन बातोंमें से एक है ऊँचे तबके के एशियाइयोंकी सारे विशेष कानूनोंसे छूट। जहाँतक, केवल निवासियोंको इनके दिये जानेका सवाल है मैं निवेदन करनेकी धृष्टता करता हूँ कि जो स्वच्छता और अन्य नियमोंका अनुसरण करते हैं, उन्हें नया कानून बननेतक अपना व्यापार अबाध रूपसे करने देना चाहिए।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो॰ क॰ गांधी


[अंग्रेजीसे]

प्रिटोरिया आर्काइब्ज : एल॰ जी॰ २१३२, एशियाटिक्स १९०२-१९०६।

३८. टिप्पणियाँ[]

[जोहानिसबर्ग
नवम्बर १६, १९०३]

नवम्बर १६, १९०३ को समाप्त होनेवाले सप्ताहका विवरण

स्थिति अब भी वैसी ही है। पिछले सप्ताह जो संक्षिप्त विवरण[] भेजा गया था वह लॉर्ड मिलनर द्वारा मई २, १९०३ को श्री चेम्बरलेनके नाम भेजे गये खरीतेके आधारपर अच्छी तरह स्पष्ट किया जा सकता है।

यद्यपि लॉर्ड मिलनर कहते हैं, सरकार इस बातके लिए चिन्तित है कि कानून इस तरह लागू हो, जिसमें उपनिवेशमें पहलेसे बसे भारतीयोंका पूरा खयाल रखा जाये, फिर भी पिछले सप्ताह यह प्रकट हो गया कि भारतीयोंका कितना कम खयाल रखा गया है।

उन भारी हितोंको, जो जोखिममें हैं, देखते हुए यह आवश्यक है कि लॉर्ड मिलनरके खरीतेसे और उद्धरण चुने जायें, जिनसे प्रकट होगा कि वह अमलमें आनेवाले वर्तमान तरीकोंसे वस्तुतः कितना भिन्न है। लॉर्ड मिलनर कहते हैं:

लड़ाईके पहले जो एशियाई उपनिवेशमें थे, केवल उन्हींका सवाल होता तो महामहिमको सरकारके मनके लायक नये कानून बननेतक हम राह देख सकते थे; परन्तु

  1. गांधीजीने यह विवरण दादाभाई नौरोजीको भेजा था, जिन्होंने इसकी एक प्रति भारतमन्त्रीको भेजी थी। यह दिसम्बर ११, १९०३ के इंडियामें छपा था।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ," नवम्बर ९, १९०३।