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यहाँ तो नये-नये आनेवालोंका ताँता लगा रहता है और वे व्यापार करनेके परवाने भी माँगते रहते हैं। ऐसी दशामें एकदम खामोश बैठे रहना असम्भव हो गया है।

लॉर्ड महोदय आगे कहते हैं:

जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, लड़ाईके पहले यहाँ जिन एशियाइयोंके जो निहित स्वार्थ थे उन्हें सरकार स्वीकार करनेको तैयार है। परन्तु दूसरी तरफ, उसे लगता है कि कानूनके खिलाफ नये निहित स्वार्थोको खड़े होने देना उचित नहीं होगा। लड़ाईके दरमियान और, युद्धविरामके बाद, कितने ही नवागन्तुकोंके नाम व्यापारके अस्थायी परवाने जारी कर दिये गये थे। इन परवानोंकी मियाद ३१ दिसम्बर, १९०३ तकके लिए बढ़ा दी गई है। परन्तु इन परवानेदारोंको हिदायतें दे दी गई है कि उस तारीखको उन्हें अपने लिए निश्चित सड़कों, या बाजारोंमें चले जाना होगा।

अब, उपर्युक्त कथनके अनुसार उन लोगोंकी राहमें, जो युद्धके पहले व्यापार कर रहे थे, कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए। साथ ही उन लोगोंको भी, जो युद्धके पहले इस देशमें बस गये थे, चाहे फिर वे युद्धके पूर्व व्यापार करते रहे हों, या नहीं। खरीतेके अनुसार बाजार-सूचनाका असर केवल उन्हीं नये आगन्तुकोंपर होना चाहिए, जिनके बारेमें कहा गया है कि वे यहां आकर भर गये हैं। वास्तवमें, जैसा कि पिछले विवरणमें बताया गया है, नये आगन्तुक तो बहुत ही कम हैं। क्योंकि देशमें केवल शरणार्थियोंको आने दिया गया है। इसलिए खरीतेपर भरोसा कर निष्क्रिय बैठे रहनेसे कोई लाभ नहीं होगा। समय भागता जा रहा है, खरीतेके अनुसार यह अत्यन्त आवश्यक है कि बेचारे ब्रिटिश भारतीयोंको आश्वासन दिया जाये कि उनके परवानोंका सम्मान किया जायेगा।

लॉर्ड मिलनर आगे कहते हैं:

प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयों और सुसभ्य एशियाइयोंपर हम कोई निर्योग्यताएँ नहीं लादना चाहते।

और, परमश्रेष्ठ आगे कहते हैं:

इसलिए, तीन महत्त्वपूर्ण बातोंमें सरकार एशियाइयोंके साथ ऐसी रियायत दिखा रही है, जो पिछली हुकूमतने नहीं दिखलाई थी।

उक्त मामलोंमें से एक है उच्च वर्गके एशियाइयोंको सभी तरहके विशेष विधानोंसे मुक्त करना। यह रियायत, निवासस्थानको छोड़कर, जो कुछ महत्व नहीं रखता, अन्यत्र अभी तक नहीं दी गई है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है देशका कानून स्वीकार करनेवाले लोगोंके व्यापारमें रोड़े न अटकाना। बस्तियोंसे बाहर निवासस्थानके अधिकारपर निःसन्देह बहुत जोर डाला जाता है। किन्तु तुलनात्मक दृष्टिसे निवासस्थानका अधिकार तो भावनासे सम्बन्धित है और व्यापारका अधिकार रोटीसे।

जहाँतक बाजारोंके लिए स्थानोंके चुनावका सम्बन्ध है, भारतीयोंकी केवल एक राय है—अर्थात् उनके कट्टर विरोधी इनसे बुरे स्थान नहीं चुन सकते थे। व्यापारके लिए ये स्थान सर्वथा बेकार हैं। ज्यादातर मामलोंमें ये उजाड़ भूमि-खण्ड है, जो व्यापारिक केन्द्रोंसे दूर पड़ते हैं। निष्पक्ष पेशेवर लोगोंने प्रमाणित किया है कि व्यापारिक दृष्टिसे उनका कोई मूल्य नहीं है।

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