रस्टेनबर्ग बाजारके सम्बन्धमें स्वास्थ्य-निकायके एक सदस्यतक ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि वहाँ व्यापार नहीं हो सकता, और तो भी लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको लिखा है:
जैसा कि आप जानते हैं, दक्षिण आफ्रिकाकी भूतपूर्व गणराज्य-सरकारने इन एशियाई बाजारोंके लिए जो जगहें चुनी थीं, उनमें बहुत-सी इस कामके लिए सर्वथा अनुपयुक्त थीं, क्योंकि शहरके व्यापार-केन्द्रोंसे वे दूर पड़ती थीं। बहुतसे शहरों में जगहें चुनी ही नहीं गई थीं। अब सरकारका यह इरादा है कि एशियाई बाजारोंके लिए उपयुक्त जगहें चुनने में जरा भी देर न की जाये। वे समाजके सभी वर्गोंके जाने-आनेके लायक हों। मुझे विश्वास है कि वहाँ रहनके लिए जानेवाले लोगोंकी जरूरत और रिवाजके अनुसार एक बार जब वहाँ बाजार स्थापित हो जायेंगे तब वे आजकी स्थितिसे अधिक अच्छी तरह नहीं तो, कमसे-कम इतनी ही अच्छी तरह वहाँ अपना व्यापार कर सकेंगे।
उक्त उद्धरण यह प्रकट नहीं करता कि लॉर्ड मिलनरके इरादे अच्छे नहीं है, बल्कि बताता है कि १८८५ के कानून ३ के प्रशासनका उत्तरदायित्व जिनपर है, वे उन इरादोंपर अमल नहीं कर रहे है। वास्तवमें वे इस कानूनको ऐसे ढंगसे अमलमें ला रहे हैं जो भारतीयोंके अत्यन्त विरुद्ध है, क्योंकि कानून सरकारको मजबूर नहीं करता कि वह बाजारोंको दूर-दराज जगहोंमें चुने, बल्कि वह उसे अधिकार देता है कि वह एशियाइयोंको रहनेके लिए सड़कें, मुहल्ले तथा बस्तियाँ बताये। लॉर्ड मिलनरने स्वयं पृथक सड़कें स्थापित करनेके बारेमें विचार किया था। उसी खरीतेमें उन्होंने कहा है: "उन्हें उन सड़कों या बाजारोंमें जाना होगा, जो इस मतलबके लिए चुने गये हैं।"
हम देखते हैं कि लॉर्ड मिलनरका वक्तव्य, जहाँतक सम्भव हो सकता है, निश्चित है। इसलिए सरकारसे जो न्यूनतम अपेक्षा की जाती है, यह है कि लॉर्ड मिलनरकी घोषणाको पूर्ण रूपसे अमल में लाये और ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोके परवानोंको नया करके उन्हेंबरबाद होनेसे बचाये। यदि सरकार चाहे तो नये अर्जदारोंके साथ भिन्न तरीकेसे बरताव किया जा सकता है।
भारतीय हितोंके प्रति प्रशासनकी उदासीनता, या वैरभावको सिद्ध करनेके लिए बारबर्टनके स्वास्थ्य-निकायकी कार्रवाईका उदाहरण दिया जा सकता है। जैसा कि पिछले सप्ताह बताया जा चुका है, वहाँ वर्तमान बस्तीको नगरसे और दूरके स्थानपर हटानेका प्रयत्न किया गया था। उसके बाद सरकारने लिखा है कि, वर्तमान बस्तीके उपकरणोंको ज्योंका-त्यों रहने दिया जायेगा; क्योंकि स्वास्थ्य-निकाय न तो उनको हटानेका हर्जाना दे सकता है, और न उसपर होनेवाले खर्च ही। किन्तु जो एक हाथसे दिया गया है, उसे दूसरे हाथसे छीन लिया गया है; क्योंकि अभी-अभी स्थानिक मजिस्ट्रेटके हस्ताक्षरोंसे एक सूचना निकली है, जिसके जरिये वर्तमान पट्टेदारोंकी पट्टेदारीपर नई और असाधारण शर्ते लगा दी गई है। ये शर्ते गैर-सरकारी पक्षोंके बीच भी नहीं सुनी गई थीं। इसका मतलब यह है कि यदि वे नई बस्तियोंमें नहीं जाना चाहते तो उन्हें अपनी जगहोंमें उप-किरायेदारको और, यहाँतक कि, किसी अभ्यागतको भी रखनेका हक न होगा। यदि वे न मानें तो उन्हें "बेदखलीका खतरा” उठाना होगा और, "नियत तारीखको किराया न देनेपर पट्टेदारी समाप्त कर दी जायेगी।" वर्तमान परवानेदारोंके सिवा न तो किसी अन्य व्यक्तिके नाम परवाने बदले जा सकते हैं और न किसी अन्य स्थानके लिए नये कराये जा सकते हैं। इस प्रकार निकायको, यदि उसका निर्णय बहाल रहा तो, एक भी पैसा खर्च किये बिना ही भारतीयोंको वर्तमान बस्तियोंसे हटानेका सन्तोष प्राप्त हो जायेगा।