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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

लिए बढ़ा दी गई है। परन्तु इन परवानेदारोंको हिदायतें दे दी गई हैं कि उस तारीखको उन्हें अपने लिए निश्चित सड़कों या बाजारोंमें चले जाना होगा।

लड़ाईसे पहले कुछ भारतीय परवानोंके बगैर व्यापार करते थे। दूसरे ऐसे भारतीय शरणार्थी भी हैं, जो लड़ाईसे पहले किन्हीं जिलोंमें व्यापार नहीं करते थे। परन्तु बादमें उन्हें वहाँ व्यापार करनेके लिए परवाने दे दिये गये हैं। उनको छेड़ा जायेगा या नहीं, इस विषयमें उपर्युक्त वक्तव्यमें एक शब्द भी नहीं आया है। लॉर्ड मिलनरके अनुसार प्रश्न एकमात्र नये आनेवालोंका है। अगर बाजार-सूचना केवल उन नये आनेवालों पर लागू होती, जिनके पास अस्थायी परवाने हैं, तो शायद बहुत कहने-सुननेकी बात नहीं होती। परन्तु यह लगभग निरपवाद रूपसे सिद्ध किया जा सकता है कि सारे वर्तमान परवानेदार शरणार्थी है, जो "लड़ाईसे पहले यहाँ रहते थे।" और फिर भी, इन सबको "उनके लिए निश्चित सड़कोंपर या बाजारों में चले जाना होगा।" "सड़कों" शब्दपर ध्यान दीजिये। और उसे नीचे लिखे संदर्भके साथ पढ़िए।

लॉर्ड महोदय कहते हैं:

जैसा कि आप जानते हैं, दक्षिण आफ्रिकाकी भूतपूर्व गणराज्य-सरकारने इन एशियाई बाजारोंके लिए जो जगहें चुनी थीं उनमें बहुत-सी इस कामके लिए सर्वथा अनुपयुक्त थीं, क्योंकि शहरके व्यापार-केन्द्रोंसे वे दूर पड़ती थीं। बहुतसे शहरोंमें जगहें चुनी ही नहीं गई थीं। अब सरकारका यह इरादा है कि एशियाई बाजारोंके लिए उपयुक्त जगहें चुनने में जरा भी देर न की जाये। वे समाजके सभी वर्गोंके जाने-आनेके लायक हों। मुझे विश्वास है कि वहाँ रहनेके लिए जानेवाले लोगोंकी जरूरत और रिवाजके अनुसार एक बार जब वहाँ बाजार स्थापित हो जायेंगे तब वे आजकी स्थितिसे अधिक अच्छी तरह नहीं तो, कमसे-कम, इतनी ही अच्छी तरह वहाँ अपना व्यापार कर सकेंगे।

इन शब्दोंको पढ़नेपर स्वभावत: किसी भी आदमीको यही खयाल हो सकता है कि इन बाजारोंकी जगहें सचमुच बड़ी अच्छी और पिछली गणराज्य सरकारने जो चुनी थीं उनसे बिलकुल भिन्न प्रकारकी होंगी। और यह कि, यह सड़कोंकी अदला-बदली मात्र है। परन्तु जिन्हें ट्रान्सवालके हालातका पता नहीं है उन्हें हम बता दें कि वहाँ इन बाजारोंका चुनाव ऊपर लिखी भावनासे नहीं किया गया है। किसी भी मामले में कोई सड़क भारतीयोंके व्यापार या निवासके लिए निश्चित नहीं की गई है। प्रायः सभी बस्तियाँ शहरके व्यापार-केन्द्रोंसे जितनी भी अधिक दूर रखी जा सकती थीं, उतनी दूर रखी गई हैं। हम अन्यत्र वे प्रतिवेदन प्रकाशित कर रहे हैं जो हमारे पास प्रकाशनार्थ भेजे गये हैं। प्रतिवेदन ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघकी प्रेरणासे इस उपनिवेशके अपने पेशेमें अच्छी स्थितिके सज्जनों द्वारा तैयार किये गये हैं। ये सब सज्जन एक रायसे कह रहे हैं कि चुनी हुई जगहें व्यापारके लिए किसी कामकी नहीं हैं। लॉर्ड मिलनरने यह तो खुद ही स्वीकार किया है कि पिछली हुकूमतने जो जगहें चुनी थीं वे व्यापारके लिए अत्यन्त अनुपयुक्त थीं। किन्तु हम पूर्ण निश्चयके साथ कहते हैं कि वर्तमान सरकार द्वारा चुनी गई जगहें प्राय: उनसे दूनी खराब हैं। पिछली सरकार द्वारा चुनी हुई बस्तियोंकी जगहोंको और भी दूर ले जानेका प्रयत्न किया गया है और एक दो बस्तियोंको छोड़ कर, जिनकी जगहें पुरानी थीं शेष सब उन्हीं दूरकी जगहोंमें कायम रखी गई हैं। आज तो प्राय: ये सारे स्थान निरे रेगिस्तान है, जहाँ सफाई और पानीका कोई प्रबन्ध नहीं है। मकान भी नहीं बने हैं। ट्रान्सवालसे ५,००० मीलकी दूरीपर बैठे हुए लोगोंको शायद हमारी बातोंपर विश्वास न हो, परन्तु अक्षरश: सत्य तो यह है कि जिन लोगोंको इन बाजारोंमें जाकर बसना है उन्हें