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ट्रान्सवालके "बाजार"

वास्तवमें एक नये नगरकी स्थापना करनी होगी। उन्हें जमीनोंके पट्टे लेने होंगे, अपने खर्चसे उनपर मकानात खड़े करने होंगे और अगर उनमें क्षमता हो, नये सिरेसे व्यापारको जमाना होगा। 'अपने खर्चेसे' शब्दपर हम इसलिए जोर दे रहे हैं कि इन बाड़ोंके लिए होड़ उन्हीं लोगोंके बीच होगी जिन्हें अपने व्यापार और निवासके लिए वहाँ मकान बनाने हैं। इसलिए स्पष्ट है कि छोटे व्यापारी वहाँ अच्छे मकान बनानेके लिए ३०० से ४०० पौंड तक नहीं जुटा सकेंगे। बाजारोंकी जगहोंका निश्चय अभी-अभी हुआ है। वहाँपर उनको तुरन्त मकान बनाना शुरू कर देना चाहिए और पहली जनवरीसे पहले उसे पूरा करके इस तारीखको अपने नये निवासपर रहनेके लिए चले जाना चाहिए। लॉर्ड महोदय फर्माते हैं कि "बाजार समाजके सब वर्गोके लोगोंके आने-जाने लायक होंगे।" अगर इन शब्दोका अर्थ यह हो कि इन बाजारोंपर पीला झंडा और आस-पास काँटेदार तार नहीं लगाये जायेंगे तो उनका कहना जरूर सही होगा। परन्तु अगर वे इन शब्दोंके द्वारा यह कहना चाहते हों कि सभी वर्गोंके लोग वहाँपर सौदा खरीदनेके लिए आसानीसे जा सकेंगे, तो हमें फिर कहना होगा कि यह एकदम गलत है। शहरसे बाहर, व्यापार-केन्द्रसे एक मीलके फासलेपर, रास्तेसे हटकर भारतीय बाजारोंमें सौदा खरीदनेके लिए जानेसे लोग इनकार करेंगे। और फिर भी लॉर्ड महोदय आशा रखते हैं कि भारतीयोंका व्यापार जिस प्रकार चल रहा है, अगर उससे अधिक अच्छी तरह नहीं तो वैसा तो जरूर चलता ही रहेगा। परिस्थितिकी यह हृदयहीनता वर्णनसे परे है। अभी तो केवल इसी आशाके सहारे लोग टिके हैं कि वर्ष समाप्त होनेसे पहले सरकारसे कुछ राहत मिलेगी और वर्तमान परवानेदारोंको छेड़ा नहीं जायेगा। खरीतेके बारेमें और भी कुछ कहना शेष है। इंग्लैंडसे और भारतसे आये समाचारपत्रोंमें हमने देखा है कि खरीतेका यह प्रभाव पड़ा है कि प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयों और मुख्य एशियाइयोंपर बाजार-सूचनाका असर नहीं पड़ेगा? क्योंकि लॉर्ड मिलनर कहते हैं:

प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयों और सुसभ्य एशियाइयोंपर हम कोई निर्योग्यतायें नहीं लगाना चाहते। … इस विषयमें पिछली हुकूमतने जो कानून बना दिया था वर्तमान सरकार फिलहाल उसे कायम रख रही है। परन्तु तीन बहुत महत्त्वपूर्ण बातोंमें वह एशियाइयोंके साथ ऐसी रियायत दिखा रही है जो पिछली हुकूमतने नहीं दिखलाई थी।

लॉर्ड महोदयने इसमें वर्तमान कालका प्रयोग किया है, जो ध्यान देनेकी बात है। इन तीन महत्वपूर्ण बातोंमें से एक तो उच्च वर्गके एशियाइयोंकी सभी विशेष कानूनोंसे मुक्ति है। भारत और इंग्लैंडके अपने पाठकोंको हम पुन: विश्वास दिलाना चाहते हैं कि इस मुक्तिके सिद्धान्तको भी मान्यता नहीं मिली है। फिर, वह मुक्ति कानूनका भाग नहीं है। और केवल निवाससे सम्बन्ध रखती है। और अगर कभी वह रियायत मिलेगी भी तो भविष्यमें किसी दिन, जिसका पता नहीं है। तबतक प्रतिष्ठित भारतीयों और अन्य सबका भाग्य एक जैसा है और उन्हें बगैर किसी रू-रियायतके बस्तियोंमें जाकर बसने और वहीं—केवल वहीं—व्यापार करनेके लिए मजबूर किया जायेगा। वास्तविक स्थिति जिसे हम जानते हैं और बता रहे हैं उसमें और लॉर्ड मिलनर द्वारा खींची गई एशियाइयोंकी स्थितिकी तसवीरमें यह महान अन्तर है। एक तसवीर लोगोंको वस्तुस्थितिसे अन्धा बना सकती है। दूसरी तसवीर वस्तुस्थितिका सही-सही चित्रण है, और हम विचारपूर्वक कहते हैं कि इसमें तिलभर भी अत्युक्ति नहीं की गई है। हम जो बातें खुद जानते हैं और जिनका ब्योरा हमको मिला है उसीके आधारपर हम यह कह रहे हैं। परिस्थिति इतनी नाजुक, और अब्रिटिश है कि हम केवल यह आशा करते हैं कि शायद इस आखिरी घड़ीमें भी उसमें कोई परिवर्तनकी सूरत निकल आये, और नवीन