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लॉर्ड हैरिस और ब्रिटिश भारतीय

संघर्षमें पड़े हुए हैं तो उससे हमें बड़ा संतोष मिलेगा। क्योंकि, हमारी लड़ाई तो अभी शुरू ही हुई है और, फिर, हम पर जो मुसीबतें आई हैं उनमें तो कहीं कहीं आशाकी किरणें भी दिखाई दे जाती हैं। अपने तमाम कामकाजके बीच श्री दादाभाई दक्षिण आफ्रिकाके प्रश्नपर भी बराबर ध्यान देते रहे हैं और वे हमारे पक्षके अत्यन्त लगन-भरे संरक्षकोंमें से हैं। परमात्मासे हमारी यही हार्दिक प्रार्थना है कि वह श्री दादाभाईको शरीर और मनसे पूर्णत: स्वस्थ रखे, ताकि वे चिरायु होकर अपनी मातृभूमिकी गौरवमयी सेवा करते रहें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९०३

४१. लॉर्ड हैरिस और ब्रिटिश भारतीय

भारत-सरकारने ट्रान्सवालको मजदूर भेजने और इस तरह उसकी मदद करनेसे तबतकके लिए इनकार कर दिया है, जबतक ट्रान्सवाल-सरकार वहाँकी भारतीय आबादीकी शिकायतोंको दूर करनेके लिए तैयार नहीं होती। हमारे सहयोगी ट्रान्सवाल लीडरको प्राप्त सामुद्रिक तारके अनुसार, कहा जाता है, बम्बईके भूतपूर्व गवर्नर लॉर्ड हैरिसने दक्षिण आफ्रिकाकी संयक्त स्वर्णक्षेत्रों (कान्सॉलिडेटेंड गोल्डफील्ड्स) के अध्यक्षकी हैसियतसे ट्रान्सवालके मजदूरों-सम्बन्धी प्रश्नपर अपने विचार प्रकट करते हुए भारत-सरकारके इस रुखपर असन्तोष प्रकट किया है। लॉर्ड हैरिस बड़े प्रतिष्ठित पुरुष हैं; परन्तु उनके उद्गारोंसे, अगर वे सही हैं, प्रकट होता है कि स्वार्थ मनुष्यको कितना अन्धा बना देता है। लॉर्ड महोदय अब बम्बईके गवर्नर तो रहे नहीं; इसलिए भारतके दृष्टिकोणसे इस प्रश्नपर विचार करनेकी उन्हें जरूरत ही नहीं मालूम होती। वे एक बहुत बड़ी सोनेकी कम्पनीके पूँजीदाता और अध्यक्ष हैं और उसके हिस्सेदारोंको मुनाफा दिलाना उनकी जिम्मेवारी है। इसलिए जब वे देखते हैं कि उनकी कम्पनी मजदूरोंकी कमीसे कठिनाईमें फंस गई है, तब भारत-सरकारके इस रुखपर उन्हें रोष आता है कि वह अपने आश्रितोंकी रक्षा करनेका प्रयास करती है। उनकी कम्पनीको मुनाफा न मिलनेकी संभावना उनकी नजरों में सबसे बड़ी चीज है। ट्रान्सवालके भारतीयोंपर लगी निर्योग्यताएँ और गिरमिटिया मजदूरोंके लिए प्रस्तावित शर्तें कितनी ही पक्षपात-भरी क्यों न हों वे उसकी तुलनामें कुछ नहीं हैं। इस घटनासे यह भी प्रकट होता है कि इंग्लैंडमें ब्रिटिश भारतीयोंके जो मित्र और संरक्षक हैं उनको कितनी सावधानीसे ब्रिटिश भारतीयोंके हितोंपर निगाह रखनेकी जरूरत है; परन्तु हम लॉर्ड महोदयसे कहेंगे कि वे अपने पिछले जीवनपर निगाह डालें जब वे बम्बईके गवर्नर थे। हम उनसे अपने देशभाइयोंकी तरफसे यह भी अपील करेंगे कि वे एक सच्चे खिलाड़ीके भावसे उनका खयाल जरूर रखें। पिछली बार इस उपनिवेशसे गुजरते समय भारतीयोंके प्रतिनिधियोंसे डर्बनमें उन्होंने यह कहा भी था कि वे अपने हृदयमें भारतीयोंके लिए सदा प्रेमपूर्ण स्थान बनाये रखेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९०३