४३. अत्याचारका इतिहास
कई वर्षोंसे और लड़ाईके बहुत पहलेसे, ब्रिटिश भारतीय बारबर्टनकी बस्ती में रह रहे हैं। उस बस्तीकी स्थापना पिछली सरकारने की थी। वहाँके स्वास्थ्य-निकायने बाजार-सूचनासे प्रोत्साहित होकर अब किसी-न-किसी बहाने ब्रिटिश भारतीयोंको उस बस्तीसे हटाकर शहरसे और भी दूर एक स्थानमें भेजनेका निश्चय किया है। इसके लिए स्वास्थ्य-निकायको सरकारकी स्वीकृति लेनी अनिवार्य थी, जो उसे तुरन्त दे दी गई। परन्तु इस शर्तपर कि, वर्तमान बस्तीको स्वास्थ्य-निकाय अपने खर्चेसे नई जगहपर ले जायेगा या केवल मकानोंकी कीमतका वाजिब मुआवजा मालिकोंको दे देगा। इसके अनुसार काबिज लोगोंको सूचनाएँ भी दे दी गई और वे परिस्थितिको समझ कर पूरे निश्चयके साथ काममें लग गये। उन्होंने सरकारसे दरखास्त की कि उन्हें वहाँसे हटाया न जाये। कई अर्जियाँ गुजारी। इसपर जांच की गई। अर्जदारोंके विरोधके आधार ये थे : पहला यह कि, वे वर्तमान बस्तीमें बहुत लम्बे अर्सेसे रह रहे हैं और अपने व्यापार-व्यवसायमें एक साख बना चुके हैं। दूसरा यह कि, ऐसे लोगोंके लिए वहाँसे हटने और नई बस्तीमें जानेसे बहुत बड़ा नुकसान होगा। तीसरा यह कि, नई बस्ती ऐसी जगह नहीं है जहाँ वे कुछ भी व्यापार कर सकें। फिर वह वर्तमान बस्तीकी अपेक्षा शहरसे और भी ज्यादा दूर है और ऐसी जगह है जो स्वास्थ्यप्रद नहीं है। इसके अलावा उन्होंने इस प्रश्नपर एक विशेष प्रतिवेदन भी तैयार कराया। शहरके प्रसिद्ध सर्वेक्षक श्री बर्टियरने उसमें लिखा कि शहरके चौक बाजारसे छोटेसे-छोटे रास्तेसे भी बस्तीकी नई जगह १ मील और ९३० गजकी दूरीपर है।
बस्तीकी जमीन उसी किस्मके काले पत्थरकी है, जैसी कि पड़ोसके अस्पतालकी छोटी टेकड़ीकी है और वास्तवमें बस्तीका एक हिस्सा तो वस्तुतः उस टेकड़ीके ढालपर ही पड़ता है। इस बातको ध्यानमें रखते हुए, यह भी गम्भीर रूपसे विचारणीय है कि इस जमीनमें दीमक बहुत हैं, जिन्होंने उक्त पहाड़ीपर अस्पतालको इमारतोंको बहुत नुकसान पहुँचाया है।
अपने वर्तमान स्थानसे बस्तीको हटाना वांछनीय है या नहीं, इस प्रश्नकी विस्तारके साथ चर्चा करते हुए श्री बर्टियरने स्पष्ट रूपसे बताया है कि यह वांछनीय नहीं है। वे लिखते हैं:
बस्तीके वर्तमान स्थानमें, जो बारबर्टनसे काप घाटीको जानेवाले मुख्य मार्गके बिलकुल नजदीक है, कुछ हदतक व्यापारकी अनुकूलता है। फासला भी इतना है कि शहरके साथ भी व्यापार-व्यवसाय चल सकता है। किन्तु नया स्थान तो मुख्य मार्गसे दूर एक कोनेमें सिरेपर पड़ेगा। शहरका फासला भी बढ़ जाता है। इस कारण व्यापारव्यवसायमें कठिनाइयाँ और भी बढ़ जायेंगी। फिर बस्ती और उपनगरोंके बीच मुसाफिरोंके लिए सरकारी बसोंकी व्यवस्था भी नहीं है। अस्पतालकी टेकड़ीके पूर्वमें होकर जो भी रास्ता नई बस्तीमें जायेगा वह स्वास्थ्य-निकायकी जमीनसे एक सौ गजके अन्दर-अन्दर ही पड़ेगा, जहाँ कि खच्चरोंका अस्तबल है, पाखाने और कूड़े-करकटको गाड़ियाँ खड़ी की जाती हैं और बाल्टियाँ तारकोल लगाकर जमा रखी जाती हैं।