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इंग्लैंड और रूस


जब ब्रिटेनमें पन्द्रहवीं शताब्दीमें लंकास्टर और यॉर्क-वंशीय युद्ध (वार्स ऑफ रोजे़ज़) समाप्त हुआ तब रूसके कतिपय जनशासित राज्य मास्कोके ग्रैंड ड्यूककी अधीनतामें संगठित थे। ज़ारशाही एक पूर्ण तथ्य थी और ग्रीक चर्चने उन शक्तियोंको मुक्त कर दिया था, जो इस्लामको पतनोन्मुख कट्टरतासे भी बढ़ गई थीं। इस प्रकार रूसने तातारी जुआ उतार फेंका था और देशोंको जीतने और अपना अंग बनानेका अभियान आरम्भ कर दिया था। नैपोलियन प्रायः कहा करता था "रूसीको खुरचो तो तुम्हें तातार मिलेगा"। यद्यपि उसका यह कथन तथ्यके ठीक विपरीत था, फिर भी रूसी लोगोंमें अब भी एक असंदिग्ध मँगोल स्वभाव दिखाई देता है। रिश्तेकी आन्तरिक भावनाने एशियामें उनका मार्ग प्रशस्त कर दिया है। उनमें जातीय अभिमान नहीं है। अतः वे अपने साथी पूर्वी प्रजाजनोंसे समानताके आधारपर मिलते हैं। समरकन्दमें मैंने मुसलमान जिला-अधिकारीके साथ भोजन किया और सामाजिक सम्पर्ककी दृष्टिसे मैं उसके स्त्री-बच्चोंसे मिला। किन्तु इसके विपरीत, अंग्रेज पूर्वी जातियोंको अपनेसे हीन समझा करते हैं। उनके इस रुखके कारण वे शक्तियाँ उनके विरुद्ध हो जायेंगी, जो यदि संगठित होती तो भारतमें राजनीतिक क्रान्ति कर देती।

हम इस पत्रसे और भी उद्धरण दे सकते हैं; किन्तु हमारा उद्देश्य पाठककी भूखको उत्तेजित करना और उसे मूल भाषण पढ़नेके लिए तैयार करना है। किन्तु हम वक्ता महोदयके अन्तिम शब्दोंके साथ, जिनमें उन्होंने तुलना करनेका प्रयत्न किया है, इस लेखको समाप्त करते हैं। वे कहते हैं:

पूर्वी लोगोंपर शासन करनेको अंग्रेजी और रूसी विधियोंकी तुलना करना कठिन है। जारके अधिकारियोंको विशाल दूरियों और अस्वास्थ्यवर्धक जलवायुसे संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि वहाँ सिंचाईका पानी, जमीनके भीतर न सोखनसे मलेरिया बहुत फैलता है। किन्तु भारतमें शासकोंकी सबसे बड़ी कठिनाई घनी आबादी और तज्जनित जीवनसंघर्षकी उग्रता है। इस प्रकार ब्रिटिश भारतमें एक भारी लुटारू वर्ग पैदा हो गया है, जिसकी समता मध्य एशियामें नहीं मिलती। सन् १८९७ में तुर्किस्तानमें ३३,४२,००० निवासी फ्रान्ससे लगभग दुगुने क्षेत्रमें रहते थे, और ट्रान्सकास्पियामें, ब्रिटेनसे तिगुनेसे कुछ ज्यादा बड़े देशमें, केवल ८,३३,००० लोग फैले हुए थे। इसके अतिरिक्त, उनकी सुख-सुविधाका स्तर भी ऊँचा है। दुष्काल वहाँके लोग जानते भी नहीं और ये प्रदेश पृथक होनेसे हैजे और प्लेगसे भी लगभग सुरक्षित है। मौकेपर जाकर रूसी तरीकोंका अध्ययन करनेवाले भारतीय अधिकारीको हैसियतसे मेरा विश्वास है कि दोनों में से प्रत्येक शक्ति अपने पूर्वी प्रजाजनोंका सामाजिक और राजनीतिक स्तर ऊँचा उठानेकी सचाईके साथ आकांक्षा रखती है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९०३