पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

करना चाहते हैं। परन्तु ब्रिटिश भारतीय तो विरोधी भी नहीं है। वे तो सह-प्रजाजन है। इसलिए हमारी राय है कि जहाँपर उन्होंने अपना व्यापार-व्यवसाय जमा लिया है वहाँसे उन्हें हटाकर, उनकी भलाईका विचार न करके, एक रेगिस्तान जैसी निर्जन जगहपर फेंक देना किसी भी प्रकार न तो उचित है और न न्याययुक्त। बस सारे प्रश्नका मर्म यही है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९०३

५०. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेससे विनती

हमें जो पत्र मिले हैं, उनसे मालूम होता है कि अगले दिसम्बर महीनेमें मद्रासमें होनेवाली कांग्रेस ब्रिटिश उपनिवेशोंमें बसे हुए भारतीयोंकी स्थितिपर विचार करेगी। इस खबरसे हमें धीरज बाँधना चाहिए और देखना चाहिए कि वहाँ क्या होता है। उपनिवेशोंमें भारतीयोंको होनेवाली तकलीफोंके बारेमें भारतीय कांग्रेस पिछले पाँच-छ: सालसे आवाज उठा रही है और छुटकारा मिले, इस हेतु उसने प्रस्ताव[१] भी पास किये हैं, जिससे सरकारका और लोगोंका ध्यान इस ओर जाये। इसके लिए उपनिवेशोंमें रहनेवाले भारतीय इस संस्थाका उपकार मानते हैं और आशा करते हैं कि वह चिन्तापूर्वक इस विषयमें अपने विचार प्रकट करती रहेगी, ताकि परिणाम अच्छा निकले।

यह साल उपनिवेशोंमें रहनेवाले भारतीयोंके लिए बहुत महत्त्वका है। आस्ट्रेलियाके लश्कर[२] सम्बन्धी व्यवहारसे भारतकी जनताकी आँखें बहुत खुली हैं। इस देश (दक्षिण आफ्रिका) में भी हर तरफसे खुल्लमखुल्ला जुल्म बढ़ने लगा है। केपमें जो प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम (इमिग्रेशन रिस्ट्रिक्शन ऐक्ट) बना, उसपर बंगालके व्यापार-संघ (चेम्बर ऑफ कामर्स) ने वाजिब कदम उठाकर सरकारका ध्यान खींचा है। केप टाउन, जोहानिसबर्ग और डर्बनमें भारतीयोंकी जो बड़ी सभाएँ हुई, उनके विवरणसे भारतकी जनता परिचित है। लेकिन ऐसा मालूम होता है कि सरकार किसी उलझनमें पड़ी, है, और उसके कारण लॉर्ड मिलनर हैं। लॉर्ड मिलनरने श्री चेम्बरलेनको जो खरीता भेजा है, उसका असर हमारे खिलाफ बहुत हुआ है—अर्थात् जान पड़ता है कि लॉर्ड मिलनरकी सद्भावनाके कारण भारत-सरकारका कुछ ऐसा खयाल बन गया है कि कानूनोंका अमल नरमीके साथ होता होगा, और भले आदमियोंको कुछ भी तकलीफ नहीं होती होगी। यह मानना कितना गलत है, सो तो हम हमेशा बताते रहे हैं।

१८९७ में नेटालमें विधान बननेके बाद उससे होनेवाली परेशानियोंकी चर्चा १९०२ तक चलती रही थी। लेकिन केप उपनिवेशमें नया प्रवासी-प्रतिबन्धक कानून बना, ट्रान्सवालमें बाजार-सम्बन्धी सूचना निकली, ऑरेंज रिवर कालोनी आँख मूंदकर अत्याचारपूर्ण कानून बनाती ही चली जा रही है, नेटालमें नगरपालिकाओंने ट्रान्सवाल जैसे कानून शुरू करनेकी माँग की है, और सरकारने गिरमिटिया मजदूरोंके बारेमें नया कानून पास किया है, इसलिए स्थितिकी गम्भीरता बहुत बढ़ गई है, जिसकी ओर हम भारतके अपने भाइयोंका ध्यान खास तौरपर खींचते हैं। अगर भारतकी सरकार एकदम जाग्रत होकर कड़े कदम नहीं उठायेगी तो, हमें डर लगता है कि, नया साल शुरू होते ही यहाँकी भारतीय जनतामें हाहाकार मच जायेगा। यहाँतक संभावना

  1. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१४ और खण्ड ३, पृष्ठ २२८-३२।
  2. ईस्ट इंडियन नाविक