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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/११०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि इसका अर्थ देशके कानूनोंका पालन करने, अपना कर चुकाने, जनतापर बोझ बननेके बजाय अपने गाढ़े पसीनेकी कमाईसे अपनी रोटी कमाने, समाजके नैतिक कानूनोंके अनुसार आचरण करने और अपने अधिवासके देशकी रक्षामें सहायता -- चाहे वह कैसी और कितनी भी छोटी क्यों न हो-देनेकी तैयारी है, तब तो हमें यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि भारतीयोंने अपना नागरिकताका भार भलीभाँति उठाया है। परन्तु हम समझते हैं कि जो लोग जानबूझकर भ्रम फैलाना चाहते हैं उनसे तर्क बेकार है। हम भारतीयोंके सम्बन्धमें अबतक जो-कुछ कहते आये हैं उसे श्री गॉश भलीभांति जानते हैं। किन्तु उन्हें उस समय अपना मोर्चा बदलना अधिक अनुकूल पड़ता था और उनमें मत प्राप्त करनेके लिए उत्सुकता भी थी। श्री गॉशका उदाहरण बताता है कि वर्तमान अवस्थाओंमें सार्वजनिक जीवन कितनी नाजुक हालतमें पहुंच गया है। कुछ भी हो, प्रभावशाली व्यक्तियोंको सन्तुष्ट करना ही होगा। इनको सन्तुष्ट करनेके लिए पवित्रसे पवित्र वस्तुका बलिदान किया जा सकता है। यदि लोक- शासनका परिणाम यही है तब तो वह दिन दूर नहीं जब उससे तेज दुर्गन्ध उठने लगेगी और वह मक्कारी तथा बेईमानीका प्रतीक और घृणित बन जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-९-१९०५

९१. ऑरेंज रिवर उपनिवेशके भारतीय

हम अन्यत्र वह पत्र-व्यवहार प्रकाशित करते हैं जो ऑरेंज रिवर उपनिवेशके ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें लॉर्ड सेल्बोर्न और जोहानिसबर्गके ब्रिटिश भारतीय संघके बीचमें हुआ था। लॉर्ड सेल्बोर्नका उत्तर अत्यन्त शिष्ट है, परन्तु है उतना ही निराशाजनक। गवर्नर प्रत्यक्षतः ब्रिटिश भारतीयोंको सान्त्वना देना चाहते हैं। फिर भी वे निश्चय ही उन स्थानीय अधिकारियोंकी रिपोर्टोसे पथ-भ्रान्त हो गये हैं जो असली प्रश्नको बड़ी चतुराईसे घपलेमें डालने में सफल हो गये हैं। ब्रिटिश भारतीय संघने भारतीयोंको तमाम किस्मोंके रंगदार लोगोंके साथ, जिनमें दक्षिण आफ्रिकाके वतनी लोग भी शामिल हैं, वर्गीकृत करनेका स्वभावतः ही विरोध किया था। उसने जो कानून इस उपनिवेशके वतनी लोगोंके लिए बनाये गये हैं उनको उप- निवेशमें आनेवाले भारतीयोंपर लागू करनेपर नाराजगी जाहिर की थी। इस कानूनका प्रभाव अमली तौरपर बहुत थोड़े भारतीयोंपर पड़ता है अतः अन्याय और भी अधिक गम्भीर हो जाता है; क्योंकि परिस्थितियोंको देखते हुए उनपर यह कानून लागू करनेकी आवश्यकता ही नहीं है। नौकरोंके पंजीकरणको आवश्यकताका विरोध हमने कभी नहीं किया। जो कानून समय-समयपर इन स्तम्भोंमें उद्धृत किये जाते रहे हैं उनके सम्बन्धमें हम दिखा चुके हैं कि उनसे वैयक्तिक स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगता है और प्रभावित लोगोंका अपमान होता है। ब्रिटिश भारतीय संघने ऐसे ही कानूनोंके विरुद्ध शिकायत की है; और वह ठीक है। इसके बदले में उसे मिला क्या है? नौकरोंके पंजीकरणका औचित्य सिद्ध करनेके लिए श्रीलंकाका एक उदाहरण है जिसका विरोध कभी किया ही नहीं गया । संघने अपने अन्तिम उत्तरमें लॉर्ड

१ और २. देखिए पत्र: गवर्नरके निजी सचिव को", पृष्ठ ५६ ।