सेल्बोर्नका ध्यान इस बातकी ओर उचित ही खींचा है कि उन्हें अवश्य ही निकट भविष्यमें ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें प्रवेशका अधिकार प्राप्त होनेकी आशा है; और यदि उनकी यह आशा न्यायपूर्ण हो तो जो प्रतिबन्धक कानून भविष्यमें बनाया जायेगा उसपर आपत्ति की जा सकती है। यह मामला ऐसा है कि इसपर तुरन्त कार्रवाई करनेकी आवश्यकता है; और हमें आशा है कि लॉर्ड सेल्बोर्न कृपापूर्वक उन ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति, जो ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें बस गये हैं या जिन्हें निकट भविष्यमें वहाँ जाना पड़ सकता है, न्याय करानेकी व्यवस्था करेंगे।
९२. उपनिवेशमें उत्पन्न प्रथम भारतीय बैरिस्टर'
हम श्री बर्नार्ड गैब्रियलका, जो हाल ही में इंग्लैंडसे पूर्ण बैरिस्टर बनकर लौटे हैं, हार्दिक स्वागत करते हैं। साधारण परिस्थितियोंमें किसी नवयुवकके बैरिस्टर बन जानेपर खास तौरसे उल्लेख करनेका कोई कारण न होता, परन्तु जिस घटनामें इस समय हमारी दिलचस्पी है वह बहुत अर्थपूर्ण है। श्री गैब्रियलके माता-पिता उन भारतीयोंमें से हैं जो इस उपनिवेशमें पहले-पहल आकर बसे थे और जो गिरमिटिया वर्गके थे। उन्होंने और उनके बड़े पुत्रोंने अपने सर्वस्वकी आहुति देकर अपने सबसे छोटे पुत्रको उच्च कोटिकी शिक्षा दिलाई है। यह उनके लिए बड़ेसे-बड़े श्रेयकी बात है। इससे उनकी सार्वजनिक भावना और पैतृक वत्सलता प्रकट होती है। उन्होंने उन गरीब भारतीयोंको, जिन्हें अपनी जीविकाके लिए गिरमिटिया बनकर काम करना पड़ा है, सब विचारवान लोगोंकी दृष्टिमें ऊँचा उठाया है। श्री बर्नार्ड गैब्रियलने यह भी दिखा दिया है कि इन परिस्थितियोंमें भी गरीब भारतीयोंके बालक ऊँची योग्यता प्राप्त करने में समर्थ हैं; और हमारा तो खयाल है कि इस घटनापर उपनिवेशियोंको भी गर्व करना चाहिए। इसका एक दूसरा पहलू भी है। जहाँ एक भारतीयके नाते श्री बर्नार्ड गैब्रियलको कानूनकी शिक्षा पाकर बैरिस्टर बन जानेपर अपने आपको बधाई देनेका पूरा अधिकार है, वहाँ उन्हें मानना चाहिए कि यह उनके उपजीवनका आरम्भ-मात्र है। उन्हें चाहिए कि वे अपने आपको जीवनके उसी क्षेत्रके अपने साथी भारतीय युवकोंका न्यासी समझें। यदि उन्होंने अच्छा उदाहरण उपस्थित किया तो अन्य माता-पिताओंको भी अपने बालकोंको शिक्षा पूरी करनेके लिए इंग्लैंड भेजनेकी प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने एक सम्मानित पेशा अपनाया है, परन्तु यदि उन्होंने इसे रुपया जोड़नेका साधन बनाया तो, सम्भव है, उनके हाथ असफलता ही लगे। यदि उन्होंने अपनी योग्यताका उपयोग समाजकी सेवाके लिए किया तो वह अधिकाधिक बढ़ती चली जायेगी। अतः हमें आशा है कि श्री गैब्रियल अपने पेशेकी
१. इसी आशयका एक मानपत्र बर्नार्ड गैब्रियलको १९ सितम्बरको कांग्रेस भवनमें डर्बनके भारतीयोंकी एक सभामें दिया गया था । (इंडियन ओपिनियन २३-९-१९०५) । प्रतीत होता है फि गांधीजी उस सभामें सम्मिलित नहीं थे और हस्ताक्षरकर्ताओंमें भी उनका नाम नहीं था। फिर भी असम्भव नहीं कि मानपत्रका मसविदा बनाने में उनका हाथ रहा हो। उसमें एक वाक्य यह है : “हमें इसमें कोई सन्देह नहीं कि आप दक्षिण आफ्रिकामें बड़े उत्साहसे अपने देशवासियों के हितोंका समर्थन करेंगे और उनकी उन्नतिम योग देंगे तथा आप अपने प्रभावका उपयोग उनकी सुख-सुविधाके निमित्त करेंगे।"