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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१६७

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इंग्लैंड जानेवाला भारतीय प्रतिनिधिमण्डल

हमारे पाठक हालमें परिचित हो चुके हैं। काँगड़ा जिलेमें भयंकर भूकम्पके कारण जो विपत्ति आ गई थी उससे लोगोंको राहत दिलानेका स्वेच्छया अंगीकृत कार्य उन्होंने पूरा ही किया था कि कर्त्तव्यकी पुकारपर वे इंग्लैंडके लिए चल पड़े। इंग्लैंडमें माननीय श्री गोखले समयपर उनके साथ नहीं हो सके, इस कारण वे अमेरिका चले गये और वहाँकी महान् जनतामें भारतीय परम्पराओंका प्रचार करते रहे। 'बोस्टन ट्रान्सक्रिप्ट'ने उनके विषयमें लिखा है:

बहुत सप्ताह नहीं हुए कि कर्नल यंगहस्बैंडने लन्दनमें घोषणा की थी कि अध्यात्म- वाद और बौद्धिक जीवनको सभी बातोंके लिए हम एंग्लो-सैक्सन लोगोंको हिन्दुओं तथा अन्य प्राच्य लोगोंके चरणों में विद्यार्थी बनकर बैठना होगा। जिन बातोंको हम सप्ताह- भरमें केवल एक बार गिरजाघरके एकान्तमें बिताये हुए एक घंटेके लिए पृथक् रख देते हैं उन्हें वे, कितने ही युगोंसे, मानव रुचियोंके उच्चतम और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंगके रूपमें पोषित करते रहे हैं, और आज भी कर रहे हैं। स्वरूपवान और गुण-सम्पन्न हिन्दू युवक श्री राय उच्च वर्गके हिन्दुओंको सुन्दरता और शक्ति कितनी भव्य है ! ... भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसका यह प्रतिनिधि, जिसने इस सप्ताह यहाँ दो बार व्याख्यान दिया है, इंग्लैंड जा रहा है।

ऐसे हैं हमारे नेता जो इस समय भारतकी वकालत करने इंग्लैंड पहुँचे हुए हैं। वे वहाँ ब्रिटिश मतदाताओंको यह बतलाने गये हैं कि भारतको अधिक अच्छा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए और शासकोंकी ओरसे उसकी सेवा अधिक अच्छी तरह होनी चाहिए। संसद सदस्य श्री श्वानके शब्दोंमें इन प्रतिनिधियोंके जिम्मे:

भारतीय जनताको आशाओं, आशंकाओं, महत्त्वाकांक्षाओं और सुधारकी अभिलाषाओंको मुखरित करनेका काम सौंपा गया है। भारतके लोगोंको इच्छा अधिक अच्छी शिक्षा पाने, भारतके विभिन्न भागोंकी विभिन्न आवश्यकताओंके अनुसार जमीनका बन्दोबस्त करने, और स्वशासनके अधिक अधिकार पानेकी है। श्री गोखले जिन लोगोंके प्रतिनिधि हैं वे समझते हैं कि बहुत-से भारतीय अपने देशके शासनमें भाग लेनेके सर्वथा योग्य हैं।

यह प्रतिनिधिमण्डल और इस समय भारतमें घटित होनेवाली अन्य अनेक बातें, असन्दिग्ध रूपसे समयकी गतिकी सूचना दे रही हैं। कहीं ऐसा न हो कि उपनिवेशके राजनीतिज्ञ उनका गलत अर्थ लगायें अथवा उनकी उपेक्षा कर दें। यदि वे ब्रिटिश झंडेकी शरणमें रहना चाहते है तो भारतको उन्हें साम्राज्यका एक अविच्छेद्य अंग और, इसलिए, सब प्रकारके लिहाजका अधिकारी मानकर चलना होगा। साम्राज्य दृढ़तासे एक सूत्र में प्रथित रहेगा अथवा परस्पर विरोधी स्वार्थों के कारण छिन्न-भिन्न हो जायेगा, इस प्रश्नका उत्तर बहुत-कुछ उस भावनापर निर्भर करेगा, जिससे प्रेरित होकर उपनिवेशी, ब्रिटिश और भारतीय राजनीतिज्ञ अपना कार्य करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-११-१९०५

१. इस विषयपर प्रो० परमानन्दके भाषण ४, ११ और १८ नवम्बर, १९०५ के 'इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुए हैं।