नियन्त्रित करनेके लिए की गई है। कोई रंगदार व्यक्ति “नगरकी शामिल जमीनपर चारसे अधिक ढोरों, घोड़ों या खच्चरोंको और आठसे अधिक भेड़ों या बकरियोंको नहीं रख सकता; और उसे इसके लिए प्रतिमास प्रति बड़ा पशु १ शिलिंग और प्रति भेड़ या बकरी ३ पैनी देने पड़ेंगे।" बस्तीका कोई भी रंगदार निवासी, टाउन क्लार्कको सूचना दिये बिना, अपने पास किसी अजनबीको नहीं रख सकता, और न पहले इजाजत लिये बिना अपने यहाँ किसी मनोरंजन या जलसेका आयोजन ही कर सकता है। वह रातको ग्यारह बजेके बाद, “सिवा किसी जरूरी कारणके ", बस्तीके अन्दर भी घूम-फिर नहीं सकता। हमने अपने पाठकोंको अन्य नगरोंके इसी प्रकारके उपनियमोंकी याद दिलानेके लिए बहुत कुछ कह दिया है। हम एक बार फिर पूछते हैं कि जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, क्या बहुसंख्यक जातिकी रक्षाके लिए इन नियमोंकी आवश्यकता है?
१८५. होडेलबर्गको जमातमें फूट और मारपीट
कुछ अरसेसे हीडेलबर्गकी जमातमें मसजिदके प्रश्नको लेकर फूट पड़ गई है और दो पक्ष बन गये हैं। जमातका झगड़ा अदालतमें गया और वहाँसे फैसला हो गया, तब भी अभी ऐक्य नहीं हुआ है।
यह बहुत ही खेदजनक है। हमारा मत है कि मसजिदके झगड़ेका अदालतमें जाना ही शर्मकी बात है। लेकिन अदालतमें जानेके बाद भी झगड़े जारी रहना और भी शर्मनाक है। इस सम्बन्धमें दोष किसका है, इसका विचार करने न बैठकर दोनों पक्षोंसे हमारा यही कहना है कि इस तरहके झगड़ेसे पूरी कौमको कलंक लगता है। इस देशमें हमपर सबकी आँखें हैं। ऐसी हालतमें अपनी पीठ खोलकर दिखाना, हम मानते हैं कि, हमारे लिए बहुत नुकसानदेह होगा। हमें आशा है कि अब भी दोनों पक्षोंके लोग समझ जायेंगे और आपसमें समझौता कर लेंगे। बात कितनी गम्भीर है यह बतानेके लिए हम यहाँ २३ तारीखके 'ट्रान्सवाल लीडर' में प्रकाशित विशेष संवाददाताके एक समाचारका अनुवाद दे रहे हैं:
'हमारे हीडेलबर्गके संवाददाताने अरबोंके गम्भीर मुकदमेके बारेमें एक तार भेजा है। खुशकिस्मतीसे जितना डर था उतना नुकसान नहीं हुआ। लेकिन झगड़ा बड़ा था। हीडेलबर्ग जैसे शान्त शहरमें दोपहरके समय अरबोंके व्यवहारसे शान्ति भंग हुई। अदालतमें मस्जिदके न्यासियोंकी बैठक थी। उसमें झगड़ा शुरू हुआ। दोनों पक्षोंके बीच तकरार यहाँ तक बढ़ी कि खून-खराबीकी नौबत न आने देनेके लिए पुलिसको बुलानेकी जरूरत पड़ी। इस घटनाकी खबर बस्तीमें फैल गई और बाजारके चौकमें बहुतसे तमाशबीन यह मारधाड़ देखनेके लिए इकट्ठा हो गये। श्री कुटसी और श्री गिसोने झगड़ा मिटानेकी बड़ी कोशिश की, परन्तु शान्ति भंग करनेवाले ठंडे नहीं हुए। कुछ देर तक मामला गम्भीर दिखाई दिया। लाठी और पत्थर चल रहे थे। बैठकमें कोलाहल मच गया था। कटु शब्दोंके बाद मुक्केबाजी होने लगी और पुलिस न आ पहुँचती तो क्या होता, यह कहा
१. भारतीय मुसलमान व्यापारी ।