२८८. उद्धरण : दादाभाई नौरोजीके नाम पत्रसे[१]
[जोहानिसबर्ग
अप्रैल १०, १९०६]
[प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत दिये जानेवाले पासों और प्रमाणपत्रोंकी प्राप्तिके लिए लगाया गया निषेधार्थक शुल्क] एक सर्वथा अन्यायपूर्ण शुल्क, जिसे लगानेका किंचिन्मात्र भी औचित्य नहीं है। . . . . . दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय समाजपर एक दूसरी गहरी चोट ट्रान्सवालमें की गई है।
कलोनियल ऑफिस रेकर्डस्, सी° ओ° ४१७, जिल्द ४३४, व्यक्तिगत।
२८९. पत्र : छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
अप्रैल १०, १९०६
चि° छगनलाल, हुसैन खाँका पत्र वापस कर रहा हूँ। इसपर अंग्रेजीके स्तम्भमें लिखा जायेगा। गुजराती स्तम्भमें कह दो कि इस मामलेपर अंग्रेजी स्तम्भमें विचार किया जा रहा है।
कलतक तुम्हारा पत्र आयेगा, ऐसा कुछ अन्दाज लगाये हूँ। मैं शायद शुक्रवारको सवेरेकी गाड़ीसे रवाना हूगा।
श्री किचिनसे अभीतक स्थिति के सम्बन्ध में बात कर रहा हूँ। वे शायद फिरसे काम करने लगें।
आशा है, मगनलाल पहलेसे बहुत अच्छा होगा।
मोहनदासके आशीर्वाद
मारफत 'इंडियन ओपिनियन'
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३४९) से।
- ↑ दादाभाईको लिखा गांधीजीका पत्र उपलब्ध नहीं है। उनके पत्रके इस उद्धरणको दादाभाई नौरोजीने उपनिवेश-मंत्रीके नाम अपने १० अप्रैलके पत्रमें प्रयुक्त किया है। पत्रके साथ उन्होंने १७-३-१९०६ का इंडियन ओपिनियन का अंक प्रेषित किया था और उसमें १०-३-१९०६ के इंडियन ओपिनियन का हवाला भी दिया था।