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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३८०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतिनिधियोंको चुननेमें जिन समाजोंका कोई हाथ नहीं है, स्वशासनका उपभोग करनेवाले उपनिवेशमें उनकी अत्यधिक उपेक्षा की गई है।

बोअरोंके भारतीय विरोधी विधानका इतिहास

(२) इस समय ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंकी अनुमानिक जनसंख्या १२,००० से अधिक है। युद्धके पहले बालिग भारतीयोंकी जन-संख्या १५,००० थी।

(३) प्रथम भारतीय निवासी ट्रान्सवालमें नौवें दशकके प्रारम्भमें आये।

(४) तब उनपर किसी प्रकारका प्रतिबन्ध नहीं था।

(५) किन्तु कारोबारमें उनकी सफलताने गोरे व्यापारियोंमें ईर्ष्या उत्पन्न कर दी और जल्दी ही व्यापार संघने जिसमें ब्रिटिश तत्वोंकी प्रमुखता थी, भारतीय विरोधी आन्दोलन शुरू कर दिया।

(६) फलस्वरूप स्वर्गीय राष्ट्रपति क्रूगरकी सरकारने स्वर्गीया महारानीकी सरकारसे ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतंत्रतापर प्रतिबंधक विधान लागू करनेकी अनुमति माँगी। उन्होंने लंदन-समझौते में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द 'वतनियों' की व्याख्यामें एशियाइयोंको सम्मिलित करनेका प्रस्ताव किया।

(७) महारानीके सलाहकारोंने इस दावेको अस्वीकृत कर दिया, किन्तु व्यापारी वर्गके भारतीयोंको पूर्णतया स्वतंत्र छोड़कर स्वच्छताके आधारपर शेष एशियाइयोंके निवासको 'बाजार' और बस्तियों में सीमित करनेका विधान बनानेके बारेमें वे असम्मत नहीं थे।

(८) इस पत्र-व्यवहारके परिणामस्वरूप १८८५ का कानून ३, १८८६ के संशोधनके साथ पास किया गया।

(९) जैसे ही यह प्रकट हुआ, ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे इसका कड़ा विरोध किया गया।

(१०) उस समय यह बात समझमें आई कि स्वर्गीया महारानीकी सरकारकी धारणाओंके विपरीत सभी ब्रिटिश भारतीयोंपर इस कानूनको लादनेका प्रयत्न किया जा रहा है।

(११) तब स्वर्गीया महारानीकी सरकारकी ओरसे भूतपूर्व वोअर सरकारके नाम कठोर प्रतिवेदनोंका क्रम चला और उसकी परिणति मामलेको ऑरेंज रिवर उपनिवेशके तत्कालीन मुख्य न्यायाधीशके पंच-फैसलेपर छोड़ने में हुई।[]

(१२) इसलिए, १८८५ से १८९५ के बीच वह लगभग एक मृत पत्र रहा यद्यपि बोअर सरकार सदा १८८५ के कानून ३ को लागू करनेकी धमकी देती रही।

(१३) पंच-फैसलेने कानूनकी स्थितिको निश्चित नहीं किया; बल्कि उसमें १८८५ के कानून ३ की व्याख्याका प्रश्न भूतपूर्व गणतंत्रकी अदालतोंपर छोड़ दिया।[]

(१४) ब्रिटिश भारतीयोंने फिर ब्रिटिश सरकारसे संरक्षणकी प्रार्थना की।

(१५) यद्यपि श्री चेम्बरलेनने पंच फैसलेमें दखल देनेसे इनकार कर किया, तथापि उन्होंने स्वर्गीया महारानीकी ब्रिटिश प्रजाके पक्षको नहीं छोड़ा। ४ सितम्बर १८९५ के अपने खरीतेमें उन्होंने कहा :

अंत में मैं कहूँगा कि यद्यपि मैं सच्चे दिलसे पंच-फैसलेको मानने और उसके द्वारा दो सरकारोंके बीच कानूनी और अन्तर्राष्ट्रीय विवादके एक प्रश्नको हल होने देनेका इच्छुक हूँ, तथापि मैं भविष्य में व्यापारियोंके बारेमें दक्षिण आफ्रिकी गणतंत्रके सामने
 
  1. १८८८ में, देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३८२।
  2. देखिए यही शीर्षक।