यह बात १८९५ की है।
(१६) इस प्रकार ऐसे प्रतिवेदनोंके कारण, जो युद्धके समय किये जाते रहे, उक्त कानून कभी पुरअसर तरीकेपर लागू नहीं किया गया और भारतीय उसमें निर्धारित प्रतिबंधके बावजूद जहाँ चाहे वहाँ रहते और व्यापार करते रहे।
(१७) किन्तु १८९९ में, जब उसके लागू किये जानेका समय सिरपर आ गया था, युद्धके पहले ब्लूमफोंटीन परिषद में अन्य बातोंके साथ यह भी चर्चाका एक विषय था। लार्ड मिलनरने इसे इतना महत्त्वपूर्ण माना कि जब युटलैंड निवासियोंके मताधिकारके प्रश्नपर किसी समझौतेकी सम्भावना दिखाई दी, तब लॉर्ड मिलनरने तार किया कि रंगदार ब्रिटिश प्रजाकी स्थितिका प्रश्न अभीतक जैसाका तैसा बना है।
(१८) लॉर्ड लैंसडाउनने इसे युद्धका सहायक कारण घोषित किया।
(१९) युद्ध समाप्त होनेपर और फेनिखन (वेरीनिगिंग) की संधिके समय बड़ी सरकारने बोअर प्रतिनिधियोंको सूचित किया कि दोनों उपनिवेशोंमें रंगदार लोगोंकी स्थिति वही होनी चाहिए जैसी केपमें है।
वर्तमान स्थिति
(२०) किन्तु आज स्थिति युद्धके पहलेसे अधिक खराब है।
(२१) जिस प्रगतिशील दलसे भारतीय कमसे कम सहराजभक्त और युद्धके पहले के सहदुःखी होनेके नाते समुचित न्यायकी अपेक्षा कर सकते हैं, उसने इस बातको अपने कार्यक्रमके अंगके रूपमें घोषित किया है कि ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतंत्रतापर निश्चित रूपसे प्रतिबन्ध लगाये जाने चाहिए। यदि उसकी इच्छाएँ कार्यरूपमें परिणत हुई तब तो, आजकी परिस्थिति बदसे बदतर हो जायेगी।
(२२) डच दलसे अब किसी भी प्रकारके औचित्यकी अपेक्षा रखना असम्भव है।
(२३) इस हालत में उत्तरदायी सरकारके अंतर्गत बिना विशिष्ट संरक्षणके भारतीयों और उन्हीं जैसी स्थितिके अन्य लोगोंके लिए न्यायकी गुंजाइश बहुत कम है।
उपाय
(२४) इसलिए जान पड़ता है कि ब्रिटिश भारतीयोंके हितोंके संरक्षणके लिए उन्हें मताधिकार प्रदान करना सर्वाधिक स्वाभाविक उपाय है।
(२५) यह बात जोर देकर कही गई है कि फेनिखनकी संधि ऐसी किसी व्यवस्थाके विधानका निषेध करती है।
(२६) किन्तु सादर निवेदन है कि "वतनी" शब्दका और चाहे जो अर्थ हो, उसमें ब्रिटिश भारतीयोंका समावेश कदापि नहीं किया जा सकता।