(२७) उपनिवेशकी विधान-संहिता ऐसे कानूनोंसे भरी पड़ी है जो "वतनियों" पर लागू होते हैं, किन्तु जो एशियाइयों या ब्रिटिश भारतीयोंपर निश्चय ही लागू नहीं होते।
(२८) यह तथ्य कि १८८५ का कानून ३ खास तौरपर एशियाइयोंके लिए है और वह "वतनियों पर लागू नहीं होता, यह भी प्रकट करता है कि ट्रान्सवालके कानूनोंने प्रायः "वतनियों" और "एशियाइयों" में सदा अंतर किया है।
(२९) वस्तुतः 'वतनी' शब्दके मान्य अर्थके कारण ट्रान्सवालमें वतनियोंको जमीन-जायदाद रखनेका हक है, एशियाइयोंको नहीं।
(३०) इस प्रकार जहाँतक फेनिखन संधिका सम्बन्ध है, भारतीयोंको मताधिकार से वंचित रखनेका कोई औचित्य नहीं दिखाई देता।
(३१) किन्तु ब्रिटिश भारतीय संघकी समिति अच्छी तरह जानती है कि गोरी कौम लगभग सर्वसम्मति से ब्रिटिश भारतीयोंके लिए संविधान में मताधिकारकी व्यवस्था रखे जानेके खिलाफ है।
(३२) इसलिए यदि ऐसा करना असम्भव माना जाये तो यह नितांत आवश्यक है कि समस्त वर्ग विधानके निषेधाधिकारसे सम्बन्धित परम्परागत संरक्षणकी धाराके अतिरिक्त एक विशेष धारा भी होनी चाहिए जो एक जीती-जागती वास्तविकता हो और जो यदा-कदा ही काम में लाई जानेके बजाय ब्रिटिश भारतीय अधिवासियोंको उनके जमीन-जायदाद रखने तथा आने-जाने और व्यापार करनेके अधिकारों सम्बन्धी पूरी-पूरी सुरक्षाका आश्वासन दे। अलबत्ता उसमें सर्वसामान्य रूपके ऐसे बचावोंकी व्यवस्था हो, जिनकी जरूरत समझी जाये; और वे बचाव जाति तथा रंगके भेदके बिना सबपर लागू किये जायें।
(३३) तब और केवल तभी, अंग्रेजी राज्यमें साधारण रूपसे निहित प्रत्येक ब्रिटिश प्रजाको प्राप्य नागरिक अधिकारके सिवा, सम्राट्के सलाहकार ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति सम्बन्धी उन्हें विशिष्ट रूपसे दिये गये वचनोंकी रक्षा कर सकेंगे।
(३४) ऊपर जो कुछ कहा गया है उसमें से बहुत-सा ऑरेंज रिवर उपनिवेशके ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू है।
(३५) सिवा घरेलू नौकर होनेके वहाँ भारतीयोंको कोई अधिकार नहीं है। उनकी लगभग सारी ही नागरिक स्वतन्त्रता एक विशद एशियाई विरोधी कानूनने छीन रखी है।
(हस्ताक्षर) अब्दुल गनी
अध्यक्ष, ब्रि° भा° सं°
ई° एस° कुवाडिया
एच° ओ° अली
इब्राहीम एच° खोटा
ई° एम° पटेल
ई° एम° जोसप
जे° ए° पटेल
मो° क° गांधी