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वक्तव्य : संविधान समितिको
परिशिष्ट 'क'
वक्तव्यमें आये हुए तथ्यों के प्रमाणोंके लिए शिष्टमण्डल संविधान समितिले निम्न सन्दर्भोंको देखनेकी प्रार्थना करता है :—
(१) 'ट्रान्सवाल हरी किताब' (ट्रान्सवाल ग्रीन बुक), सं° १, १८९४।
(२) 'ट्रान्सवाल हरी किताब,' सं° २, १८९४।
(३) 'ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतोंपर 'सरफारी रिपोर्ट' (ब्ल्यू बुक), १८९६ में प्रकाशित।
(४) 'सरकारी रिपोर्ट' (ब्ल्यू बुक), जिसमें ट्रान्सवालके भारतीयोंसे सम्बन्धित पत्रव्यवहार है। क्रमांक २२३९।
(५) "वतनियों और कुलियों" से सम्बन्धित कानून और फोक्सराट प्रस्ताव' आदि (एक पृथक सरकारी प्रकाशन)।
परिशिष्ट 'ख'
नीचे बोअर तथा ब्रिटिश शासनके अन्तर्गत ट्रान्सवालमें भारतीयोंकी स्थितिफा मिलान दिया गया है।
युद्धके पहले | ब्रिटिश शासनाधीन |
१. भारतीय बिना किसी प्रतिबन्धके देशमें आ सकते थे। | १. जो युद्ध शुरू होनेके पहले चले गये थे उन प्रामाणिक शरणार्थियों को छोड़कर अन्यका प्रवेश निषिद्ध है। और इन लोगोंको भी धीरे-धीरे, तथा उनकी अर्जियों-पर विचार करने में बड़ी देरी लगाकर आने दिया जाता है। छोटे बच्चों के लिए भी अनुमतिपत्र आवश्यक हैं और उनपर प्रत्येक भारतीयको अपने अँगूठेकी छाप देनी पड़ती है। |
२. पंजीकरण शुल्क देनेकी बाध्यता नहीं थी। | २. अब ३ पौंड पंजीकरण शुल्क देना ही पड़ता है। अन्यथा १०० पौं° तक अधिकतम जुर्माना और छः महीने तक की कैदका नियम सख्ती से लागू किया जाता है। अब भारतीय स्त्रियोंसे भी पंजीकरण शुल्क वसूल करनेकी कोशिश हो रही है और उन्हें भी अनुमतिपत्र लेनेपर बाध्य किया जा रहा है। |
३, भारतीय गोरे लोगों के नामपर जमीन जायदाद रख सकते थे। | ३. एशियाइयों द्वारा जमीन-जायदाद रखनेकी मुमानियत के फानूनका वहाँ भी सख्ती से पालन किया जाता है जहाँ धार्मिक कामोंके लिए जमीनकी आवश्यकता |
४. जोहानिसबर्ग में बस्ती या बाजारोंमें भारतीयोंके पास ९९ वर्षकी अवधिके पट्टेपर जमीनें थीं। | ४. अस्वच्छ क्षेत्रके आयुक्तके प्रतिवेदनपर ये पट्टे छीन लिये गये हैं और उन्हें यह आश्वासन भी नहीं दिया गया कि जोहानिसबर्ग के किसी अन्य उपयुक्त भागमें उन्हें उतनी जमीन मिलेगी। |