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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३८९

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३६५. भारतीय मुसाफिर

पिछले कुछ दिनोंसे हमारे गुजराती पत्र-व्यवहारवाले स्तम्भ भारतीय डेक मुसाफिरोंकी, जो जर्मन पूर्व आफ्रिकी कम्पनीके जहाजोंका इतना अधिक प्रतिपालन करते हैं, शिकायतोंसे पूर्णतः भरे रहते हैं। हमारे संवाददाताओंने अत्यधिक भीड़, स्वच्छताकी अपर्याप्त व्यवस्था और छत (डेक) के मुसाफिरोंके प्रति आम लापरवाहीकी शिकायतें की हैं। उनमें कुछका कहना है कि जब जहाज किसी बन्दरगाह्पर पहुँचते हैं तब मुसाफिरोंको बड़ी असुविधाका सामना करना पड़ता है। वे बिलकुल खुले में होते हैं और उनसे अपना सामान खुद हटानेको कहा जाता है। हम कम्पनी के स्थानीय एजेंटोंका ध्यान इन शिकायतोंकी ओर आकर्षित करते हैं। हम जानते हैं कि गरीब भारतीय मुसाफिरोंको यात्राका जो तरीका मजबूरीकी हालत में चुनना पड़ता है उससे थोड़ी-बहुत असुविधाका होना अनिवार्य है। मुसाफिरोंके लिए छतपर जो स्थान रहता है उससे अधिक सुविधाकी उम्मीद करना असम्भव है। साथ-ही-साथ यह एक कुख्यात तथ्य है कि छतपर की जानेवाली यात्रासे कम्पनीको सबसे ज्यादा लाभ और सबसे कम तकलीफ होती है। इसलिए कम्पनीके व्यवस्थापकोंका कर्तव्य है कि परिस्थितियोंके अनुसार जितना आराम छतके मुसाफिरोंको देना सम्भव हो, दें — और किसी दृष्टिसे नहीं, तो सिर्फ धनोत्पादनकी ही दृष्टिसे सही।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६
 

३६६. एक अनुमतिपत्र सम्बन्धी मामला

हमारे जोहानिसबर्ग-संवाददाताने, जोहानिसबर्गकी अदालतमें श्री क्रॉसके सामने पेश हुए एक मुकदमेका विवरण भेजा है। आदम इब्राहीम नामक बारह सालसे कमका एक लड़का मजिस्ट्रेटके सामने पेश किया गया; क्योंकि वह बिना पंजीयन प्रमाणपत्रके ट्रान्सवालमें था।

मुकदमेका रूप कुछ अजीब था; क्योंकि अभीतक ऐसे सब मुकदमे शान्ति-रक्षा अध्यादेश के अन्तर्गत चलाये जाते थे। यद्यपि इस कानूनसे बचना कम सहज था, तथापि जुर्माने या कारावासके रूपमें उसमें कोई दण्ड नहीं था। इधर, १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत अभियुक्तपर १०० पौंड तक के जुर्माने या छः मास तक के कठोर या सादे कारावासका विधान है। खैर, यह खुशीकी बात है कि अभियुक्त वकीलको यह साबित करनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई कि लड़केपर ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके लिए पंजीयन शुल्क नहीं लग सकता।

इस प्रकार सरकार द्वारा भारतीयोंपर लगाई गई बेड़ियाँ जितनी ही पीड़ाकारी होती जाती हैं, न्यायके हथौड़ेकी मुक्तिकारी चोट, जान पड़ता है, उतनी ही भारी पड़ती है। प्रशासन जिसे प्रसन्नता-से नष्ट करना चाहे, उसकी न्याय-विभाग रक्षा करता है। क्या लॉर्ड सेल्बोर्न अब भी कहेंगे कि कानूनका अमल, जिसके बारेमें सिद्ध कर दिया गया है, कि वह अवैध है, उचित तरीकेसे हो रहा है और जो इससे प्रभावित हैं, उनका समुचित खयाल रखा जाता है?

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६