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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


इसी बीच उन्होंने कानूनका अध्ययन किया, बैरिस्टर बने, ऑक्सफोर्डसे उपाधि ली और ग्रीक-लैटिन आदि भाषाओंका अभ्यास किया। अपने देश लौटते समय वे २,००० पौंड अपने साथ बचाकर ले गये थे। कहा जाता है कि, ऐसा उदाहरण दूसरे किसी भारतीयका दिखाई नहीं दिया। भारतमें वे अजमेर[१] वगैरह जगहोंपर दीवान रहे। बादमें उनके विचार बदले और उन्होंने अपनी कमाईको देश-सेवाके काम में लगानेका निश्चय किया। इसलिए वे विलायतमें आ बसे। यहाँ वे अपनी खरीदी हुई जमीनपर रहते हैं। वे काफी अच्छी स्थितिमें रह सकते हैं, फिर भी अत्यन्त गरीबी से रहते हैं। पोशाक बहुत ही सादी पहनते हैं और साधुवृत्ति रखते हैं। देश-सेवा ही उनका कर्तव्य है। देशसेवा करनेमें उनकी धारणा यह है कि भारतको पूर्ण स्वराज्य मिलना चाहिए; यानी, अंग्रेजोंको भारतसे बिलकुल निकल जाना चाहिए और सारी सत्ता भारतीयोंको सौंपी जानी चाहिए। यदि अंग्रेज ऐसा नहीं करते तो भारतीयोंको उनकी मदद कतई नहीं करनी चाहिए। इससे वे राजकाज नहीं चला सकेंगे और उन्हें मजबूरन भारत छोड़ना पड़ेगा। उनका अभिप्राय है कि जबतक यह बात नहीं होती, भारतकी प्रजा कदापि सुखी नहीं हो सकती। दूसरे सब साधन स्वराज्यके बाद मिल जायेंगे।

इंडिया हाउस

इन विचारोंको बल मिले और उनके पंथका बहुत-से लोग अनुसरण करें, इस इरादेसे उन्होंने अपने खर्चसे इंडिया हाउसकी स्थापना की है। उसमें अध्ययनके लिए हर भारतीयको प्रवेश मिलता है और विद्यार्थीसे हर हफ्ते बहुत ही कम पैसा लिया जाता है। उसमें हिन्दू मुसलमान सभी रह सकते हैं और रहते हैं। कुछ तो श्री श्यामजीके पैसेसे पढ़ते हैं। हरएकको अपनी रुचिके अनुसार खाने-पीनेकी स्वतन्त्रता है। इंडिया हाउस बहुत सुन्दर जगहपर है, इससे वहाँकी हवा बहुत ही अच्छी है। अली और मैं पहले दिन इंडिया हाउसमें ही उतरे थे। वहाँ हमारी बहुत अच्छी खातिरदारी की गई थी। लेकिन हमारा काम तो बहुत बड़े-बड़े लोगोंसे मिलना था, इसलिए, और इसलिए भी कि इंडिया हाउस दूर था, हमें होटलमें आकर बहुत ज्यादा खर्चपर रहना पड़ा है।

विलायतका खर्च

मैं मानता था कि रोजाना एक पौंड खर्चपर एक आदमी रह सकेगा। लेकिन अनुमानमें मेरी गलती हुई। यहाँ १२ शि० ६ पें० प्रतिदिन तो पलंग और बैठक-घरका लगता है, और स्नानागारका १ शि० ६ पें० अलग। और इतना खर्च होता है सिर्फ एक ही व्यक्तिके लिए। श्री अली अपना स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए डॉ० ओल्डफील्डके परिचर्या-भवनमें सोते हैं। यदि होटलका खाना लें, तो हर भोजनके कमसे-कम ५ शि० लगेंगे, इसलिए खाना शाकाहारी भोजनालय में खाता हूँ और जब किसी नये या बड़े आदमीको खानेका निमन्त्रण दिया जाता है, तब होटल में खाता हूँ। जैसे आज श्री जेम्स, चीनी प्रतिनिधि और एक चीनी वकीलको खानेका निमन्त्रण दिया था। साथमें श्री रिच भी थे। इसलिए आजका खाना १ पौंड ११ शिलिंगका हुआ। शाकाहारी भोजनालय में प्रति व्यक्ति शायद ही कभी १ शि० ६ ० से ज्यादा होता है। श्री गॉडफे या

  1. अजमेर देशी राज्य नहीं था। वह अंग्रेजी राज्यमें था। लगता है, गाँधीजी भूलसे उदयपुर के लिए, जहाँ श्री कृष्णवर्मा दीवान रहे अजमेर लिख गये हैं ।