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शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवा में


सर लेपिल ग्रिफिन: महानुभाव, आपने अभी जो कुछ कहा उससे शिष्टमण्डलका परिचय देनेका मेरा काम अधिक आसान हो गया है। हम लॉर्ड महोदयके बहुत आभारी हैं कि उन्होंने इस शिष्टमण्डलको भेंट दी है। आप जानते हैं कि इसके सभी सदस्य भारतसे सम्बद्ध हैं, और इनमें से अधिकांश स्वयं वहाँ रहे हैं, तथा सभीकी भारतमें दिलचस्पी है। प्रसन्नताकी बात यह है कि उनकी यह दिलचस्पी किसी दलगत भावनाके कारण नहीं है, क्योंकि इस शिष्टमण्डल में सभी पक्षोंका प्रतिनिधित्व है। अब दक्षिण आफ्रिकासे आये हुए प्रतिनिधियोंका आपसे परिचय करा दूँ। ये श्री गांधी हैं। लॉर्ड महोदय जानते हैं कि ये इनर टैम्पलके बैरिस्टर हैं और इन्होंने विगत बोअर-युद्ध तथा नेटालके विद्रोहमें आहत-सहायक दलके संगठन और अन्य कामोंके द्वारा देशके हित में बहुत उत्तम काम किया है। अब ये जोहानिसबर्ग में वकालत करते हैं। श्री अली इनके सहयोगी हैं। ट्रान्सवालके भारतीय समाजके मुसलमानोंके ये प्रतिनिधि हैं, बड़े धनी-मानी व्यापारी हैं और ट्रान्सवालकी इस्लामिया अंजुम नकेसंस्थापक हैं, और जहाँतक मुझे मालूम है, उसके अध्यक्ष भी हैं। अभी जो अध्यादेश पास किया गया है और जिसके बारेमें हम साम्राज्यीय सरकारसे निषेधाज्ञाकी प्रार्थना करनेवाले हैं, उसकी तफसील पेश करनेकी बात में इन्हीं सज्जनों पर छोड़ता हूँ। किन्तु में इस समय उपनिवेश कार्यालय के सामने जो मामला है, उसे समझाने के लिए कुछ शब्द कहना चाहता हूँ और लॉर्ड महोदयका थोड़ा ही समय लूँगा।

मुझे लगता है, शिष्टमण्डलका परिचय कराने के लिए मुझसे कहनेका मुख्य कारण यह है कि मैं उस पूर्व भारत संघकी परिषदका अध्यक्ष हूँ जिसके लॉर्ड महोदय लब्धप्रतिष्ठ उपाध्यक्ष हैं; किन्तु पूर्व भारत संघने अक्सर जिस प्रश्नपर क्रमशः आनेवाले उपनिवेश-मन्त्रियों, भारतमन्त्रियों और वाइसरायोंके सामने जोर दिया है उसका हमारी आजकी उपस्थिति से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। जैसा कि लॉर्ड महोदय जानते हैं, पूर्व भारत संघकी शिकायतोंकी आधारशिला यह रही [है] कि सभी सदाचारी, राजभक्त और उद्योगी ब्रिटिश प्रजाजनोंको कौम या रंगका विचार किये बिना ब्रिटिश साम्राज्यके सारे उपनिवेशोंमें समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। न्यायकी इस आधारशिलाको अतीतकालमें सदा अस्वीकार किया गया है, किन्तु पूर्व भारत संघ, जिसके प्रतिनिधि आज यहाँ काफी संख्या में मौजूद हैं, इसीमें आस्था रखता है और वह इसी आधारपर अपना विरोध व्यक्त करेगा। किन्तु, महानुभाव, शिष्टमण्डल आजके इस अपराह्न में जो प्रश्न सामने रखना चाहता है, वह ठीक यही प्रश्न नहीं है; वह उन बड़े-बड़े दावोंको पेश नहीं कर रहा है जो हम पहले पेश कर चुके हैं; वह इतना ही चाहता है कि केवल ट्रान्सवालपर लागू होनेवाले अमुक अध्यादेशको साम्राज्यीय सरकारकी स्वीकृति न दी जाये।

इस विषयपर थोड़े-से शब्द कहना पर्याप्त होगा। बोअर शासनकालमें ब्रिटिश भारतीयों से काफी कड़ाईके साथ बरताव किया जाता था, किन्तु ट्रान्सवालमें उनके प्रवेशपर प्रतिबन्ध नहीं था और बालिग व्यापारियोंसे अनुमतिपत्रके लिए शुल्क लेनेके सिवा उनपर किसी प्रकारकी रोक-टोक नहीं थी। किन्तु उनकी परिस्थिति बहुत ही अधिक परेशानी देनेवाली थी और बहुत बार उसका विरोध किया गया था। हमारा ऐसा खयाल था कि जब वह देश अंग्रेजोंके हाथमें आ जायेगा तब ये शिकायतें दूर हो जायेंगी। अभी इन शिकायतोंके दूर होनेके बजाय उनको परिस्थिति और खराब हो गई है और पंजीयन तथा शिनाख्तके नियम बहुत ही ज्यादा सख्त