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शिष्टमण्डल: लॉर्ड एलगिनकी सेवामें

उपनिवेश है, बसाया हुआ उपनिवेश नहीं और वहाँ जो अन्य देशी लोग हैं वे ही इस शिष्ट भारतीय समाजके विरुद्ध हैं।

महोदय, मैं आपका अधिक समय नहीं लेना चाहता, किन्तु आपसे यह कहना चाहता हूँ कि हम आपसे, सम्राट्की सरकारके प्रतिनिधिकी हैसियतसे तथा यह जानते हुए कि आपकी सहानुभूति भारतीयों के साथ है और आपने बड़ी कुशलतासे उनपर शासन किया है, यह प्रार्थना करते हैं कि आप इस अध्यादेशके प्रति निषेधाज्ञा प्राप्त करायें। यह शिष्टमण्डल आपके सामने आज कोई बड़ा प्रश्न लेकर उपस्थित नहीं हो रहा है। वे राजनीतिक अधिकार नहीं माँगते। ट्रान्सवालके युद्ध में इंग्लैंडके प्रति श्रद्धा रखने के कारण उनमें से अनेकोंने अपने प्राण न्योछावर किये हैं। उन्होंने वहाँ वैसे ही साहससे काम किया, जैसे इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया या कनाडासे भेजी गई सेनाओंके लोगोंने किया था और वे अपनी उस महान और लगनसे की हुई सेवाका कोई बदला नहीं माँगते। उन सेवाओंको कोई मान्यता नहीं दी गई; उल्टे उनको उपेक्षा की गई है और नये बोझ लाद दिये गये हैं। हम आज न्याय और खालिस न्यायके सिवा कुछ नहीं चाहते। हम इतना ही चाहते हैं कि बोअर हमपर जिन कोड़ोंसे प्रहार करते थे वे ब्रिटिश सरकारके हाथों में जाकर बिच्छू न बन जायें।

अन्तम मैं यह कहूँगा कि हमें वर्तमान सरकारसे हर तरहकी आशा है और वह इसलिए कि इस सरकारने चीनियोंकी शिकायतोंको अधिकसे-अधिक सहानुभूतिके साथ सुना है; किन्तु जहाँतक शिष्टमण्डलका सम्बन्ध है, चीनियों और अन्य राष्ट्रोंके विदेशियोंका प्रश्न नहीं उठता। हम चीनियोंके लिए कुछ नहीं माँगते, अपनी सहप्रजाके लिए माँगते हैं और हम प्रार्थना करते हैं कि यदि उदारता नहीं, तो उनके साथ न्यायसे काम लिया जाये और लॉर्ड महोदय उन्हें अत्याचारों और अपमानोंसे बचायें।

इस शिष्टमण्डलको लॉर्ड महोदयकी इच्छानुसार छोटा रखा गया है। यह इससे बहुत बड़ा हो सकता था। यह एक कसौटीका मामला है, आगे या पीछे हटनेका प्रश्न है। भारतके भूतपूर्व वाइसरायके नाते लॉर्ड महोदय निश्चित रूपसे जानते हैं कि इस कसौटीके मामले में आज जो निर्णय दिया जायेगा, उसपर सारे भारतका ध्यान, ३० करोड़ भारतीयोंका ध्यान लगा हुआ है। और मैं लॉर्ड महोदयसे यह सोचने और याद रखनेकी प्रार्थना करूंगा कि यह अध्यादेश भारतमें पैदा होनेवाले भारतीयोंके अतिरिक्त उन तमाम भारतीय अधिकारियोंका भी अपमान करता है, जिनमें मैं और शिष्टमण्डलके अधिकांश सदस्य आ जाते हैं। क्या हम यह मान लें कि हम लोग, जिन्होंने लॉर्ड महोदय तथा आपके पूर्वाधिकारियों और उत्तराधिकारियोंके मातहत भारतीय प्रदेशके शासनमें भाग लिया है और काम किया है, कुछ ऐसे गिरे हुए लोगोंपर शासन कर रहे थे जो रूसी, यहूदी और जूलू लोगोंसे भी गये-गुजरे हैं। महोदय, बात ऐसी नहीं है। जिनपर आपने ऐसा अच्छा शासन किया है उन लोगोंकी यथासम्भव रक्षाका भार हम आपपर छोड़ते हैं। यदि मेरा बोलनेका ढंग आवेशपूर्ण हो गया हो, तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा माँगता हूँ, क्योंकि मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि ट्रान्सवालमें आकर बस जानेवाले लोगोंका (मैं उन्हें उपनिवेशी नहीं कहूँगा) वहाँके ब्रिटिश भारतीयोंके साथ आज