पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो व्यवहार है, उसके कारण मेरे मनमें जो लज्जा और क्षोभ घनीभूत है, उसकी तुलनामें मेरे शब्दोंकी गरमी बहुत कम है।

श्री गांधी: श्री अली और मैं, दोनों, लॉर्ड महोदयके बहुत कृतज्ञ हैं कि आपने ब्रिटिश भारतीय स्थिति अपने सामने रखने के लिए हमें अवसर दिया। यद्यपि हमें प्रतिष्ठित आंग्लभारतीय मित्रों और अन्य लोगोंका समर्थन प्राप्त है फिर भी मुझे लगता है कि श्री अली और मेरे सामने जो काम है वह बहुत कठिन है; क्योंकि जोहानिसबर्ग में ब्रिटिश भारतीयोंकी सार्वजनिक सभाके बाद लॉर्ड सेल्बोर्नके द्वारा आपको जो तार[१] भेजा गया था उसके उत्तरमें आपने कृपापूर्वक ब्रिटिश भारतीय संघको सूचित किया था कि आप हमें अपना पक्ष उपस्थित करनेके लिए पूरा अवसर तो देंगे; परन्तु इसका कोई अच्छा परिणाम निकलना सम्भव नहीं है; क्योंकि महानुभावने अध्यादेशके सिद्धान्तको इस दृष्टिसे स्वीकार कर लिया है कि इससे ब्रिटिश भारतीयोंको यद्यपि उतनी राहत नहीं मिलती जितनी कि महामहिमकी सरकार चाहती है फिर भी कुछ राहत तो मिलती ही है। हम, जो मौकेपर हैं और सम्बन्धित अध्यादेशसे प्रभावित हैं, इस तरह नहीं सोचते। हमने अनुभव किया है कि यह अध्यादेश हमें किसी भी प्रकारकी राहत नहीं देता। यह एक ऐसा कानून है जिससे ब्रिटिश भारतीयोंकी दशा पहलेकी अपेक्षा बहुत ही खराब हो जाती है और उनकी स्थिति लगभग असह्य बन जाती है। इस अध्यादेशके अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीयको घोर अपराधी मान लिया जाता है। ट्रान्सवालकी परिस्थितियोंसे अनभिज्ञ कोई अजनबी यदि इस अध्यादेशको पढ़े तो उसे इस निर्णयपर पहुँचनेमें हिचक नहीं होगी कि इस प्रकारका अध्यादेश, जिसमें इतने दण्ड-विधान हैं और जो ब्रिटिश भारतीय समाजपर सब तरफसे प्रहार करता है, केवल चोरों या डाकुओंके गिरोहपर ही लागू होना चाहिए। इसलिए मैं यह सोचनेका साहस करता हूँ कि यद्यपि सर लेपेल ग्रिफिनने इस अध्यादेशके सम्बन्धमें असाधारण भाषाका प्रयोग किया है, परन्तु उनके कथनमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है और उसका प्रत्येक शब्द ठीक है। इसके साथ ही मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि यह अध्यादेश, अपने संशोधित रूपमें, ब्रिटिश भारतीय स्त्रियोंपर लागू नहीं होता। निःसन्देह प्रस्तावित अध्यादेश स्त्रियोंपर भी लागू होता था, परन्तु कहा जा सकता है कि चूँकि ब्रिटिश भारतीय संघ और पृथक् रूपसे हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके अध्यक्ष श्री अलीने तीव्र विरोध किया कि उससे स्त्रियोंकी प्रतिष्ठापर बड़ा आघात पहुँचेगा इसलिए इस अध्यादेशमें ऐसा संशोधन किया गया कि यह स्त्रियोंपर लागू नहीं होगा। परन्तु यह समस्त बालिग पुरुषों, यहाँतक कि बच्चोंपर भी, लागू होता है--इस अर्थमें कि माँ-बापको या संरक्षकको अपने बच्चों या आश्रितोंका, जहाँ जैसी बात हो, पंजीयन प्रमाणपत्र लेना पड़ेगा।

ब्रिटिश कानूनका यह मौलिक सिद्धान्त है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति, जबतक उसका अपराध सिद्ध न हो जाये, निर्दोष समझा जाता है। परन्तु यह अध्यादेश इस विधिको बदल देता है और प्रत्येक भारतीयको अपराधी करार देता है और उसके लिए अपनी निर्दोषता सिद्ध करनेकी कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता। हमारे विरुद्ध अभी कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सका है, परन्तु तो भी प्रत्येक ब्रिटिश भारतीयको, उसका दर्जा चाहे जो हो, अपराधीके समान समझा जायेगा और उसके साथ निर्दोष आदमीके जैसा व्यवहार नहीं किया जायेगा। लॉर्ड महोदय, ब्रिटिश

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४६८-६९।